पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/५८

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तुम्हारी जात-पांत की क्षय / 59 गांधीजी अछूतपन को हटाना चाहते हैं, लेकिन शास्त्र और वेद की दुहाई भी साथ ले चलना चाहते हैं। यह तो कीचड़ से कीचड़ धोना है। में अछूतपन को समझना दूसरे मुल्क के लोगों के लिए कितना कठिन है। इसका मैं उदाहरण देता हूँ। 1922 में ब्रिटिश गवर्नमेंट ने जब अपना साम्प्रदायिक निर्णय दिया और गांधीजी ने उस पर आमरण अनशन शुरू किया, उस समय मैं लन्दन में था। बहुत दिनों के बाद यह सनसनीखेज खबर भारत के सम्बन्ध में इंग्लैंड के पत्रों में छपी। उन्होंने मोटी-मोटी सुर्खियाँ देकर इसे छापा । जिन देशों में अस्पृश्यता नहीं है, वहाँ के लोग इस बारे में क्या जानें? लन्दन यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले एक चीनी छात्र हमारे पास आये और उन्होंने पूछा- “अस्पृश्यता क्या है ? मैंने कुछ समझाना चाहा। उन्होंने पूछा—“क्या कोई छूत की बीमारी होती है या कोढ़ की तरह का कोई कारण होता है जिससे कि लोग आदमी को छूना नहीं चाहते ?" मैंने कहा कि आदमी स्वस्थ और तन्दुरुस्त हमारी ही तरह होते हैं, हाँ अधिकांश की आर्थिक दशा हीन जरूर होती है। मैं आधे घंटे से अधिक अस्पृश्यता के बारे में समझाने की कोशिश करता रहा, लेकिन देखा कि मेरे दोस्त के पल्ले कुछ पड़ नहीं रहा है । तब मैंने अमेरिका के नीग्रो लोगों का उदाहरण देकर समझाना शुरू किया। अब यद्यपि मैं थोड़ा-बहुत समझाने में सफल हुआ, लेकिन तब भी वह उनकी समझ में नहीं आया कि एक ही रंग और रूप के आदमियों में अस्पृश्यता कैसी ? पिछले हजार बरस के अपने राजनीतिक इतिहास को यदि हम लें तो मालूम होगा कि हिन्दुस्तानी लोग विदेशियों से जो पद्दलित हुए, उसका प्रधान कारण जाति-भेद था। जाति-भेद न केवल लोगों को टुकड़े-टुकड़े में बाँट देता है, बल्कि साथ ही यह सबके मन में ऊँच-नीच का भाव पैदा करता है। ब्राह्मण समझता है हम बड़े हैं, राजपूत छोटे हैं। राजपूत समझता है हम बड़े हैं, कहार छोटे हैं। कहार समझता है हम बड़े हैं, चमार छोटे हैं। चमार समझता है हम बड़े हैं, मेहतर छोटे हैं। और मेहतर भी अपने मन को समझाने के लिए किसी को छोटा कह ही लेता है। हिन्दुस्तान में हजारों जातियाँ हैं और सबमें यह भाव है। राजपूत होने से ही यह न समझिए कि सब बराबर हैं। उनके भीतर भी हजारों जातियाँ हैं। उन्होंने कुलीन कन्या से ब्याह कर अपनी जात ऊँची साबित करने के लिए आपस में बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी हैं और देश की सैनिक शक्ति का बहुत भारी अपव्यय किया है। आल्हा-ऊदल की लड़ाइयाँ इस विषय में मशहूर हैं। इस जाति भेद के कारण देश रक्षा का भार सिर्फ एक जाति के ऊपर रख दिया गया था। जहाँ देश की स्वतन्त्रता के लिए सारे देश को कुर्बानी के लिए तैयार