पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/५७

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राहुल सांकृत्यायन महापंडित राहुल सांकृत्यायन हिंदी नहीं अपितु भारतीय वांग्मय के अप्रतिम विभूति हैं। वे साहित्यकार होने के साथ-साथ बहु भाषाविद्, इतिहासकार, दार्शनिक यायावर स्वतंत्रता सेनानी और धर्म एवं समाज के तत्वों के मर्मज्ञ थे। उनके 50 हजार पृष्ठों के विपुल साहित्य में उनका बहुआयामी व्यक्तित्व स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है। परन्तु राहुल जी के चिंतन का केंद्र बिन्दु था मानव मात्र की आजादी एवं समतामूलक समाज की स्थापना । आज के सामाजिक ढांचे के विषय में राहुल जी ने लिखा है - "जब तक यह ढांचा तोड़कर नया ढांचा नहीं बनाया जाता, दुनिया नरक बनी रहेगी।" भारतीय समाज का विश्लेषण करते हुए राहुल जी ने इस समाज की ऐसी 6 बातें गिनाईं जिनका क्षय होना समतामूलक समाज के निर्माण के लिए आवश्यक है। इसमें वर्तमान समाज, धर्म, सदाचार, भगवान, जात-पात और शोषकों का क्षय होना गिनाया। राहुल जी ने अपने लेखन में हमेशा ही करारा प्रहार किया जिसके उद्धरण ‘भागो नहीं दुनिया को बदलो', 'घुम्मकड़ शास्त्र', 'दिमागी गुलामी', ‘जीवन यात्रा', इत्यादि पुस्तकों में देखे जा सकते हैं। 'बाइसवीं सदी' नामक पुस्तक में उन्होंने वर्ण व्यवस्था के अंत की आशा जताई है। -अजेय तुम्हारी जात-पाँत की क्षय - — हमारे देश को जिन बातों पर अभिमान है, उनमें जात-पाँत भी एक है। दूसरे मुल्कों में जात-पाँत का भेद समझा जाता है भाषा के भेद से, रंग के भेद से | हमारे यहाँ एक ही भाषा बोलने वाले, एक ही रंग के आदमियों की भिन्न-भिन्न जातें होती हैं। यह अनोखा जाति भेद हिन्दुस्तान की सरहद के बाहर होते ही नहीं दिखलाई पड़ता। और इस हिन्दुस्तानी जाति भेद का मतलब ? - धर्म और आचार पर पूरा जोर देने वाले भिन्न जाति वालों के साथ खाना नहीं खा सकते, उनके हाथ का पानी तक नहीं पी सकते, शादी का सवाल तो बहुत दूर का है। मुसलमान और ईसाई तक भी इस छूत की बीमारी से नहीं बच सके हैं-कम-से-कम ब्याह - शादी में अछूतों का सवाल, जो इसी जाति भेद का सबसे उग्र रूप है हमारे यहाँ सबसे भयंकर सवाल है। कितने लोग शरीर छू जाने से स्नान करना जरूरी समझते हैं। कितनी ही जगहों पर अछूतों को सड़कों से होकर जाने का अधिकार नहीं है। हिन्दुओं की धर्म-पुस्तकें इस अन्याय के आध्यात्मिक और दार्शनिक कारण पेश करती हैं।