पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/५४

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जातिप्रथा उन्मूलन / 55 जो वहां मात्र भाड़े के सैनिकों के रूप में नहीं हैं, बल्कि अपने देश के लिए लड़ती हुई सेना के रूप में हैं। अब आप समझ गए होंगे कि मैं ऐसा क्यों सोचता हूं कि हिन्दुओं की जातिप्रथा को समाप्त करना प्रायः असम्भव है। बहरहाल, इसे समाप्त करने से पहले कई युग बीत जाएंगे। चाहे कार्य करने में समय लगता है या चाहे उसे तुरन्त किया जा सकता है, लेकिन आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि आप जातिप्रथा में दरार डालना चाहते हैं तो इसके लिए आपको हर हालत में वेदों और शास्त्रों में डाइनामाइट लगाना होगा, क्योंकि वेद और शास्त्र किसी भी तर्क से अलग हटाते हैं और वेद तथा शास्त्र किसी भी नैतिकता से वंचित करते हैं। आपको 'श्रुति' और 'स्मृति' के धर्म को नष्ट करना ही चाहिए। इसके अलावा और कोई चारा नहीं है । यही मेरा सोचा- विचारा हुआ विचार है। (17) हिन्दू धर्म, धर्म नहीं, कानून है हिन्दू जिसे धर्म कहते हैं, वह और कुछ भी नहीं केवल आदेशों तथा निषेधाज्ञों का पुलिंदा है। आध्यात्मिक सिद्धांतों के रूप में धर्म यथार्थ में सार्वभौमिक होता है, जो सारी प्रजातियों और देशों पर हर काल में समान रूप से लागू होता है । ये तत्व हिन्दू धर्म में विद्यमान नहीं हैं और यदि हैं तो भी ये हिन्दू के जीवन को संचालित नहीं करते । हिन्दू के लिए 'धर्म' शब्द का अर्थ स्पष्ट रूप से आदेशों और निषेधाज्ञों से है और धर्म शब्द वेदों और स्मृतियों में इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है तथा ऐसा ही टीकाकारों द्वारा समझा गया है। वेदों में प्रयुक्त 'धर्म' शब्द का तात्पर्य धार्मिक अध्यादेशों या अनुष्ठानों से है। यहां तक कि जेमिनी ने अपनी 'पूर्व मीमांसा' में धर्म की परिभाषा इस प्रकार की है, “एक इच्छित लक्ष्य या परिणाम जो आदेशार्थ हैं, जिसे वैदिक परिच्छेदों में बताया गया है।" सरल और सीधी भाषा में कहा जाए तो हिन्दू'धर्म' को कानून या अधिक से अधिक कानूनी वर्ग-नीति मानते हैं। स्पष्ट रूप से कहा जाए तो मैं इस अध्यादेशीय संहिता को 'धर्म' मानने से इन्कार करता हूं। गलत रूप से धर्म कही जाने वाली इस अध्यादेशीय संहिता के प्रति निष्ठा नहीं है, केवल आदेशों का पालन ही आवश्यक है। इस अध्यादेशीय संहिता की सबसे बड़ी बुराई यह है कि इसमें वर्णित कानून कल, आज और हमेशा के लिए एक ही हैं। ये कानून असमान हैं तथा सभी वर्गों पर समान रूप से लागू नहीं होते। इस असमानता को चिरस्थायी बना दिया गया है क्योंकि इसे सभी पीढ़ियों के लिए एक ही प्रकार से लागू किया गया है। आपत्तिजनक बात यह नहीं हैं कि इस संहिता को किसी