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जातिप्रथा उन्मूलन / 53 (16) वेदों और शास्त्रों में डाइनामाइट लगाना होगा • जाति तथा वर्ण ऐसे विषय हैं, जिन पर वेदों और स्मृतियों में विचार किया गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि यदि किसी हिन्दू से तर्क करने का आग्रह किया जाए तो उस पर कोई असर नहीं होता। जहां तक जाति और वर्ण का सम्बन्ध है, शास्त्रों में केवल यही नहीं कहा गया है कि हिन्दू किसी प्रश्न पर निर्णय लेने में तर्क का आधार नहीं ले सकता, बल्कि यह भी कहा गया है कि जाति और वर्ण व्यवस्था में उसके विश्वास के आधार की समीक्षा तार्किक ढंग से नहीं की जाएगी। अनेक गैर-हिन्दू लोगों के लिए यह मौन मनोरंजन का विषय साबित होगा, जब वे यह देखेंगे कि कुछ अवसरों जैसे रेल यात्रा तथा विदेश यात्रा में अनेक हिन्दू जाति का बंधन तोड़ देते हैं, लेकिन फिर भी वे अपने शेष जीवन में जाति व्यवस्था को बनाए रखने का प्रयास करते रहते हैं। यदि इस घटना की व्याख्या की जाए तो ज्ञात होगा कि हिन्दुओं की तर्क शक्ति पर एक और नियंत्रण है। मनुष्य का जीवन सामान्यतः आभ्यासिक तथा अचिंतनशील होता है। किसी धर्म, विश्वास या ज्ञान के कल्पित रूप के सम्बन्ध में सक्रिय, संगत एवं श्रमसाध्य विचार की दृष्टि से (उसके समर्थक आधार तथा सम्भावित निष्कर्षों के परिप्रेक्ष्य में) चिंतनशील विचार यदा- कदा और केवल धर्मसंकट में किया जाता है। किसी हिन्दू के जीवन में रेल यात्राएं और विदेश यात्राएं वास्तव में ऐसे ही धर्मसंकट होते हैं। ऐसे अवसरों पर किसी हिन्दू से यह आशा करना स्वाभाविक है कि वह अपने आपसे यह पूछे कि जब वह सदैव जाति व्यवस्था का पालन नहीं कर सकता तो वह जाति-व्यवस्था को मानता ही क्यों है। लेकिन वह यह प्रश्न अपने आपसे नहीं करता है । वह एक कदम पर जातपांत को तोड़ देता है और दूसरे कदम पर कोई प्रश्न उठाए बिना उसका पालन करने लगता है। ऐसा आश्चर्यजनक आचरण करने का कारण शास्त्रों के नियम में मिलेगा जो उसे यह निर्देश देता है कि उसे यथासम्भव जाति व्यवस्था का पालन करना चाहिए और पालन न करने की स्थिति में उसे प्रायश्चित करना चाहिए । प्रायश्चित के इस सिद्धान्त के अनुसार शास्त्रों ने समझौते वाली भावना का पालन करते हुए जाति व्यवस्था को हमेशा के लिए जीवनदान दे दिया और चिंतनशील विचारों की अभिव्यक्ति को दबा दिया, क्योंकि ऐसा न करने पर जाति व्यवस्था की धारणा नष्ट हो सकती थी। - ऐसे अनेक समाज सुधारक हुए हैं, जिन्होंने जातिप्रथा तथा अस्पृश्यता का उन्मूलन करने के लिए कार्य किया है। उनमें रामानुज, कबीर आदि प्रमुख हैं। क्या