पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/५१

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52 / जाति क्यों नहीं जाती ? करनी चाहिए, जिसने अपने आपको देश के हितों के बजाए उस जाति के हितों का अभिरक्षक समझ रखा है। सारी स्थिति अत्यन्त खेदजनक हो सकती है। लेकिन सच्चाई यह है कि ब्राह्मण लोग ही हिन्दुओं का बुद्धिजीवी वर्ग है। यह केवल बुद्धिजीवी वर्ग ही नहीं है, बल्कि यह वह वर्ग है जिसका कि शेष हिन्दू लोग बहुत आदर करते हैं । हिन्दुओं को यह पढ़ाया जाता है कि ब्राह्मण भूदेव है- 'वर्णानाम् ब्राह्मणों गुरू'। हिन्दुओं को यह पढ़ाया जाता है कि उनके शिक्षक केवल ब्राह्मण ही हो सकते हैं। मनु ने कहा है, "यदि यह पूछा जाए कि धर्म के उन विषयों में क्या किया जाएगा, जिनका कि विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, तो उत्तर यह है कि शिष्ट ब्राह्मण जो भी प्रस्तुत करेंगे, वह विधिमान्य होगा।" अनाम्नातेषु धर्मेषु कथं स्यादिति चेद्भवेत् । यं शिष्टा ब्राह्मण ब्रूयुः सधर्मः स्यादशङ्कितः ॥ जब ऐसा बुद्धिजीवी वर्ग जिसने शेष हिन्दू समाज पर नियंत्रण कर रखा है, जाति-व्यवस्था में सुधार करने का विरोधी है तभी मुझे जातिप्रथा समाप्त करने वाले आंदोलन का सफल होना नितांत असम्भव दिखाई देता है। मैं यह क्यों कहता हूं कि यह कार्य असम्भव है, इसका दूसरा कारण तब स्पष्ट होगा, जब आप यह याद रखेंगे कि जाति-व्यवस्था के दो पक्ष हैं। पहले पक्ष के अनुसार मनुष्यों को अलग-अलग समुदायों में विभाजित किया जाता है। जाति- व्यवस्था के दूसरे पक्ष के अनुसार सामाजिक दर्जे में इन समुदायों का सोपानिक क्रम निर्धारित किया जाता है। प्रत्येक जाति को गर्व है और इस बात से संतुष्टि है कि वह जाति- क्रम में किसी अन्य जाति से ऊंची है। इस श्रेणीकरण के बाह्य लक्षण के रूप में सामाजिक और धार्मिक अधिकारों का भी एक श्रेणीकरण है, जिन्हें शास्त्रीय रूप से 'अष्टाधिकार' और 'संस्कार' कहा जाता है। किसी जाति का दर्जा जितना ऊंचा होगा, उतने ही अधिक उसके अधिकार होंगे। जिस जाति का दर्जा जितना नीचा होगा, उतने ही कम उसके अधिकार होंगे। समुदायों के इस श्रेणीकरण तथा जातियों के इस सोपान ने जाति-व्यवस्था के विरुद्ध एक सामूहिक मोर्चा खोलना असम्भव बना दिया है। यदि कोई जाति अपने से ऊंची जाति के साथ रोटी-बेटी का सम्बन्ध करने के अधिकार का दावा करती है तो उसका तत्काल निषेध कर दिया जाता है और शरारती लोग जिनमें अनेक ब्राह्मण भी शामिल हैं, यह कहते हैं कि यह रोटी- बेटी का सम्बन्ध अपने से नीची जाति तक ही अनुमत होगा। सभी लोग जाति- व्यवस्था के दास हैं। लेकिन सभी दासों का दर्जा बराबर नहीं है। -