पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/५०

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जातिप्रथा उन्मूलन / 51 लिए कहने का अर्थ, उनको मूल धार्मिक धारणाओं के विपरीत चलने के लिए कहना है। यह स्पष्ट है कि सुधार का पहला और दूसरा मार्ग सरल है। लेकिन तीसरे मार्ग के सुधार में अत्यधिक कार्य करना होगा, जो प्रायः असम्भव सा है । हिन्दू सामाजिक व्यवस्था को पवित्र मानते हैं। जाति-व्यवस्था का आधार ईश्वरीय है । अतः आपको उस पवित्रता और देवत्व को नष्ट करना होगा, जो जाति व्यवस्था में समाया हुआ है। अंतिम विश्लेषण के रूप में, इसका अर्थ यह है कि आपको शास्त्रों और वेदों की सत्ता समाप्त करनी होगी। आपमें से कुछ यह कहेंगे कि यह एक मामूली बात है कि जातिप्रथा समाप्त करने के लिए आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए ब्राह्मण आगे आएं अथवा नहीं। मेरे विचार से इस दृष्टिकोण का अपनाया जाना समाज के बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा अदा की गई भूमिका की उपेक्षा करना होगा। चाहे आप इस सिद्धान्त को मानें या न मानें कि एक महान पुरुष इतिहास का निर्माता होता है, लेकिन आपको इतना अवश्य स्वीकार करना होगा कि प्रत्येक देश में बुद्धिजीवी वर्ग सर्वाधिक प्रभावशाली वर्ग रहा है, वह भले ही शासक वर्ग न रहा हो । बुद्धिजीवी वर्ग वह है, जो दूरदर्शी होता है, सलाह दे सकता है और नेतृत्व प्रदान कर सकता है। किसी भी देश की अधिकांश जनता विचारशील एवं क्रियाशील जीवन व्यतीत नहीं करती। ऐसे लोग प्राय: बुद्धिजीवी वर्ग का अनुकरण और अनुगमन करते हैं। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि किसी देश का सम्पूर्ण भविष्य उसके बुद्धिजीवी वर्ग पर निर्भर होता है । यदि बुद्धिजीवी वर्ग ईमानदार, स्वतन्त्र और निष्पक्ष है तो उस पर यह भरोसा किया जा सकता है कि संकट की घड़ी में वह पहल करेगा और उचित नेतृत्व प्रदान करेगा। यह ठीक है कि प्रज्ञा अपने आपमें कोई गुण नहीं है । यह केवल साधन है और साधन का प्रयोग उस लक्ष्य पर निर्भर है, जिसे एक बुद्धिमान व्यक्ति प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। बुद्धिमान व्यक्ति भला हो सकता है, लेकिन साथ ही वह दुष्ट भी हो सकता है। उसी प्रकार बुद्धिजीवी वर्ग उच्च विचारों वाले व्यक्तियों का एक दल हो सकता है, जो सहायता करने के लिए तैयार रहता है और पथभ्रष्ट लोगों को सही रास्ते पर लाने के लिए तैयार रहता है । बुद्धिजीवी वर्ग धोखेबाजों का एक गिरोह या संकीर्ण गुट के वकीलों का निकाय हो सकता है, जहां से उसे सहायता मिलती है। आपको यह सोचकर खेद होगा कि भारत में बुद्धिजीवी वर्ग ब्राह्मण जाति का ही दूसरा नाम है। आप इस बात पर खेद व्यक्त करेंगे कि ये दोनों एक हैं । बुद्धिजीवी वर्ग का अस्तित्व किसी एक जाति से आबद्ध होना चाहिए और इस बुद्धिजीवी वर्ग को ब्राह्मण जाति के हितों आंकाक्षाओं में साझेदारी