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जाति के आधार पर ही हार-जीत के प्रयास लगाए जाते हैं और पूरा चुनाव जाति का चुनाव हो जाता है।

जातियों को खुश करने के लिए चुनाव से ऐन पहले ऐसी घोषणाएं की जाती हैं जिनसे उस जाति के वोटों का चुनावी लाभ लिया जा सके। राजस्थान में जाटों के आरक्षण का मामला इसका उदाहरण है। इन क्रियाकलापों से जातियां वोट बैंक बन जाती हैं जिससे असली मुद्दे गौण होते चले जाते हैं और जातिगत गोलबंदी हावी होती जाती है ।

बड़े-बड़े नेता भी अंततः एक जाति के नेता के रूप में पेश किए जाते हैं। और चुनावी गठबन्धनों के रूप में इसका असर पड़ता है। एक नेता पूरी जाति के वोटों के ठेकेदार के रूप में उभरकर आता है। उत्तर प्रदेश के कल्याणसिंह, बिहार में रामविलास पासवान, मध्य प्रदेश की उमा भारती, इनके उदाहरण हैं। महाराष्ट्र में मराठा व ब्राह्मण आदि किसके साथ हैं इससे वोट प्रतिशत किस पार्टी का कितना होगा चुनाव विश्लेषक यह अनुमान बताते हैं। जातियां ही पहचान बना रही हैं। जाति के नाम पर शिक्षण संस्थाएं, धर्मशालाएं आदि पूरे के पूरे संस्थान विकसित हो रहे हैं।

पहले वही लोग नेता बनते थे जो सामाजिक बुराईयों, कुरीतियों से लड़ते थे और समाज के विकास में सकारात्मक भूमिका निभाते थे। आजकल राजनीति में जाति एक शार्टकट है जिसका नेता बनना आसान है और बिना किसी विशेष मेहनत, सेवा व योग्यता के इतने लोगों का समर्थन मिलना भी आसान है। इसलिए नेताओं द्वारा जातियों को वोट बैंक में बदलने तथा इस वोट बैंक को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश जारी है। चुनाव अब चुनाव नहीं बल्कि जाति युद्ध बनते जा रहे हैं।

विडम्बना यही है कि जातियों का यह अवसरवादी तबका जाति में निचले स्तरों पर जी रहे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं करता। अपनी जाति में पनप रही बुराईयां जैसे दहेज, भ्रूण हत्या, महिलाओं के स्वास्थ्य एवं कुपोषण, वृद्धों की असुरक्षा आदि भी इनके एजेंडे पर नहीं होती। जाति-सेवा के नाम पर अधिक से अधिक काम होता है--दूसरे जाति के नेताओं द्वारा इस जाति के शोषण का विलाप या फिर जाति के नाम पर बने बड़े-बड़े भवनों को कुछ रकम दान में देना। यही है जाति सेवा का आजमाया हुआ तरीका। असल में यह भी उनकी अपनी ही सेवा है जिसके लिए वे अपनी जाति के गरीब लोगों से धन उगाहते हैं क्योंकि ये शिक्षा-भवन व धर्मशालाओं का प्रबन्ध इनके पास ही रहता है और यहां बैठकर बिरादरी का रोब दिखाने की जगह मिल जाती है ।

भारतीय समाज असल में जाति-समाज है। प्रत्येक जाति का अपना समाज है, रोटी-बेटी का संबंध है। एक जाति दूसरी जाति से रोटी का संबंध रखती भी है