पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/४९

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50 / जाति क्यों नहीं जाती ? सुधार करने का अनुपयुक्त तरीका है। प्रतीत होता है कि महात्मा गांधी समेत अस्पृश्यता को समाप्त करने वाले समाज सुधारक यह महसूस नहीं करते हैं कि लोगों के कार्य मात्र उन धर्म-विश्वासों के परिणाम हैं, जो शास्त्रों द्वारा उनके मन में पैदा कर दिए गए हैं। लोग तब तक अपने आचरण में परिवर्तन नहीं करेंगे, जब तक वे शास्त्रों की पवित्रता में विश्वास करना नहीं छोड़ देते, जिस पर उनका आचरण आधारित है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ऐसे प्रयासों का कोई सकारात्मक परिणाम न निकले। आप भी वही गलती कर रहे हैं, जो अस्पृश्यता को समाप्त करने के उद्देश्य से काम करने वाले समाज सुधारक कर रहे हैं। रोटी-बेटी के सम्बन्ध के लिए आंदोलन करना और उनका आयोजन करना कृत्रिम साधनों से किए जाने वाले, बलात् भोजन कराने के समान है। प्रत्येक पुरुष और स्त्री को शास्त्रों के बंधन से मुक्त कराइए, शास्त्रों द्वारा प्रतिष्ठापित हानिकर धारणाओं से उनके मस्तिष्क का पिंड छुड़ाइए, फिर देखिए, वह आपके कहे बिना अपने आप अंतर्जातीय खान-पान तथा अंतर्जातीय विवाह का आयोजन करेगा / करेगी । (15) जाति-व्यवस्था को नष्ट करना ही सुधार है आपको सफलता मिलने के अवसर क्या हैं? सुधार की विभिन्न किस्में हैं। एक किस्म वह है जो लोगों की धार्मिक धारणा से सम्बन्धित नहीं है, लेकिन उसका स्वरूप विशुद्ध रूप से धर्म निरपेक्षता वाला है । सुधार की दूसरी किस्म का सम्बन्ध लोगों की धार्मिक भावना से है। सामाजिक सुधारों की इन किस्मों के दो प्रकार हैं । एक में, सुधार धर्म के सिद्धान्तों के अनुरूप होता है और उन लोगों से जो इन सिद्धान्तों से विचलित हो गए हैं, यह कहा जाता है कि वे उनको फिर से स्वीकार कर लें और उनका पालन करें। दूसरे प्रकार के सुधार में, न केवल धार्मिक सिद्धान्तों में हस्तक्षेप किया जाता है, बल्कि उनका पूर्ण रूप से विरोध किया जाता है और लोगों से यह कहा जाता है कि वे इन सिद्धान्तों का पालन न करें और उनकी सत्ता की अवज्ञा करें। जाति-व्यवस्था ऐसे कुछ धार्मिक विश्वासों का स्वाभाविक परिणाम हैं, जो शास्त्र-सम्मत हैं। शास्त्रों के बारे में यह विश्वास किया जाता है कि ईश्वर द्वारा प्रेरित उन ऋषियों का आदेश निहित है, जो अलौकिक प्रज्ञा से सम्पन्न थे । अतः ऋषियों की आज्ञाओं का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। यदि उल्लंघन किया जाएगा तो पाप लगेगा। सुधार का एक और प्रकार है- वह है, 'जाति-व्यवस्था नष्ट करना ।' यह सुधार तीसरे वर्ग के अंतर्गत आता है। लोगों से जातपांत त्यागने के