पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/४५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

46 / जाति क्यों नहीं जाती ? लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है। संरक्षक और आश्रित का सम्बन्ध भले ही ऐसी वास्तविक संकल्पना हो, जिस पर चातुर्वर्ण्य की व्यवस्था आधारित थी, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि व्यवहार में यह सम्बन्ध वस्तुतः मालिक और नौकर का था। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के आपसी सम्बन्ध भी संतोषजनक नहीं थे, फिर भी वे मिलकर कार्य करने में सफल हुए। ब्राह्मण ने क्षत्रिय की खुशामद की और दोनों ने वैश्य को जीवित रहने दिया, ताकि वे उसके सहारे जीवित रह सकें। लेकिन तीनों शूद्र को पद-दलित करने के लिए सहमत हो गए। उसे धन-सम्पति अर्जित करने की अनुमति नहीं दी गई, क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि वह तीनों वर्णों पर निर्भर ही न रहे । उसे विद्या प्राप्त करने से रोका गया कि कहीं ऐसा न हो कि वह अपने हितों के प्रति सजग हो जाए। उसके लिए शस्त्र धारण करना निषिद्ध था कि कहीं ऐसा न हो कि वह उनकी सत्ता के विरूद्ध विद्रोह करने के लिए साधन प्राप्त कर ले। तीनों वर्ण शूद्रों के प्रति ऐसा ही व्यवहार करते थे, इसका प्रमाण मनु के कानून में मिलता है। सामाजिक अधिकारों के सम्बन्ध में मनु के कानून से ज्यादा बदनाम और कोई विधि संहिता नहीं है। सामाजिक अन्याय के सम्बन्ध में कहीं से भी लिया गया कोई भी उदाहरण मनु कानून के समक्ष फीका पड़ जाता है। अधिकांश जनता ने इन सामाजिक बुराईयों को क्यों सहन किया ? विश्व के अन्य देशों में सामाजिक क्रांतियां होती रही हैं । भारत में सामाजिक क्रांतियां क्यों नहीं हुईं, यह एक ऐसा प्रश्न है जो मुझे सदैव कष्ट देता रहा है। मैं इसका केवल एक ही उत्तर दे सकता हूँ और वह यह है कि चातुर्वर्ण्य की इस अधम व्यवस्था के कारण हिन्दुओं के निम्न वर्ग सीधी कार्रवाई करने में पूर्णतः असक्त बन गए हैं। वे हथियार धारण नहीं कर सकते, और हथियारों के बिना वे विद्रोह नहीं कर सकते थे। वे सभी हलवाहे थे या हलवाहे बना दिए गए थे । और उन्हें हलों को तलवारों में बदलने की कभी भी अनुमति नहीं दी गई । उनके पास संगीनें नहीं थीं इसलिए कोई भी व्यक्ति उन पर प्रभुत्व जमा लेता । चातुर्वर्ण्य के कारण वे शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके । वे अपनी मुक्ति का मार्ग नहीं सोच सके या ज्ञात कर सके। उन्हें सदैव दबाकर रखा गया । उन्हें अपने छुटकारे का न तो रास्ता ही मालूम था और न ही उनके पास साधन थे। उन्होंने अनंत दासता से समझौता कर लिया और ऐसी नियति पर संतोष कर लिया, जिससे उन्हें कभी भी छुटकारा नहीं मिल सकता था। यह ठीक है कि यूरोप में भी शक्तिशाली व्यक्ति कमजोर व्यक्ति का शोषण करने में पीछे नहीं रहा। लेकिन वहां इतने शर्मनाक ढंग से कमजोर व्यक्ति का शोषण नहीं किया गया, जितना कि भारत में हिन्दुओं ने किया था। यूरोप में शक्तिशाली और कमजोर के बीच भारत की