पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/४४

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जातिप्रथा उन्मूलन / 45 आदि अर्जित करने की आवश्यकता नहीं है, या यह था कि उसे धन सम्पति आदि अर्जित करनी ही नहीं चाहिए। यह बहुत ही दिलचस्प प्रश्न है। चातुर्वर्ण्य सिद्धान्त के समर्थक इसका पहला अर्थ यह निकालते हैं कि शूद्र को धन सम्पति आदि अर्जित करने का कष्ट क्यों उठाना चाहिए, जब कि तीनों वर्ण उसकी सहायता के लिए मौजूद हैं। शूद्र को शिक्षा प्राप्त करने की परवाह क्यों करनी चाहिए, जब कि एक ब्राह्मण मौजूद है। यदि शूद्र को लिखने पढ़ने की जरूरत होगी तो वह ब्राह्मण के पास जा सकता है। शूद्र को शस्त्र धारण करने की चिंता क्यों करनी चाहिए, जब कि उसकी रक्षा के लिए क्षत्रिय मौजूद है । इस अर्थ में समझे गए चातुर्वर्ण्य - सिद्धान्त के अनुसार यह कहा जा सकता है कि शूद्र एक आश्रित व्यक्ति है और तीनों वर्ण उसके संरक्षक । इस व्याख्या के अनुसार यह एक साधारण, समुनतकारी और आकर्षक सिद्धान्त है। चातुर्वर्ण्य की संकल्पना पर जोर देने वाले दृष्टिकोण को सही मान लेने पर मुझे यह वर्ण व्यवस्था न तो स्पष्ट दिखाई देती है और न ही सरल । उस स्थिति में क्या होगा, जब ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रिय विद्या प्राप्त करने, व्यापार करने तथा वीर सैनिक बनने के लिए अपने-अपने कर्त्तव्यों को छोड़ दे ? इसके विपरीत, मान लीजिए कि वे अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हैं, किंतु शूद्र के प्रति या एक दूसरे के प्रति अपने कर्त्तव्यों का उल्लंघन करते हैं, तब शूद्र का क्या होगा जब तीनों वर्ण उसकी सहायता न करें, या तीनों मिलकर उनको दबा कर रखें। उस स्थिति में शूद्र या वैश्य तथा क्षत्रिय के हितों की रक्षा कौन करेगा, जब उसकी अज्ञानता का लाभ उठाने वाला ब्राह्मण हो ? शूद्र तथा ऐसे मामले में ब्राह्मण और वैश्य की स्वतन्त्रता की रक्षा करने वाला कौन होगा, जब लुटेरा क्षत्रिय हो ? एक वर्ण का दूसरे पर निर्भर रहना अनिवार्य है। कभी कभी एक वर्ण को दूसरे वर्ण पर निर्भर रहने दिया जाता है। लेकिन परमावश्यकताओं की स्थिति में एक व्यक्ति को दूसरे पर निर्भर क्यों बनाया जाए? शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त करनी चाहिए । रक्षा के साधन सभी लोगों के पास होने चाहिएं। प्रत्येक व्यक्ति के आत्म परीक्षण के लिए ये परम आवश्यकताएं हैं। किसी अशिक्षित और निरस्त्र व्यक्ति को इस बात से क्या सहायता मिल सकती है कि उसका पड़ोसी शिक्षित और सशस्त्र है ? अतः यह संपूर्ण सिद्धान्त बेतुका है । ये ऐसे प्रश्न है, जिनसे चातुर्वर्ण्य के समर्थक चिंतित प्रतीत नहीं होते। लेकिन ये अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्न हैं। यदि चातुर्वर्ण्य के समर्थकों की इस संकल्पना को मान लिया जाए कि विभिन्न वर्गों के बीच आश्रित और संरक्षक का जो सम्बन्ध है, चातुर्वर्ण्य की वही वास्तविक संकल्पना है तो यह स्वीकार करना होगा कि इसमें संरक्षक के दुष्कर्मों से 'आश्रित' के हितों की रक्षा के