पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/४३

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44 / जाति क्यों नहीं जाती ? की रही हो उसे उसके गुण के आधार पर प्रतिष्ठा प्रदान करें। उसके उद्देश्य से 'वर्ण व्यवस्था' की स्थापना के लिए पहले जातिप्रथा को समाप्त करना होगा? लेकिन ऐसा कैसे किया जाए? जन्म के आधार पर बनी चार हजार जातियों को मात्र चार वर्गों में किस तरह परिवर्तित किया जा सकता है ? चातुर्वर्ण्य के समर्थक चातुर्वर्ण्य की स्थापना की सफलता चाहते हैं तो उन्हें एक अन्य कठिनाई का भी समाधान ढूंढ़ना होगा। चातुर्वर्ण्य के समर्थकों ने यह नहीं सोचा है कि उनकी इस वर्ण व्यवस्था में स्त्रियों का क्या होगा? क्या उन्हें भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र - चार वर्णों में विभाजित किया जाएगा, या उन्हें अपने पतियों का दर्जा प्राप्त कर लेने दिया जाएगा? यदि स्त्री का दर्जा शादी के बाद बदल जाएगा तो चातुर्वर्ण्य के सिद्धान्त का क्या होगा, अर्थात् क्या किसी व्यक्ति का दर्जा उसके गुण पर आधारित होना चाहिए? यदि उनका वर्गीकरण उनके गुण के आधार पर किया जाता है, तो क्या उनका ऐसा वर्गीकरण नाममात्र का होगा या वास्तविक । यदि वह नाममात्र का है, तो बेकार है। इस स्थिति में तो चातुर्वर्ण्य के समर्थकों को यह स्वीकार करना होगा कि उनकी वर्ण-व्यवस्था स्त्रियों पर लागू नहीं होती । यदि यह वास्तविक है, तो क्या चातुर्वर्ण्य के समर्थक स्त्रियों पर इस व्यवस्था को लागू करने के तर्कसंगत परिणामों का अनुसरण करने के लिए तैयार हैं? उन्हें महिला पुरोहित तथा महिला सैनिक रखने के लिए तैयार रहना होगा। हिन्दू समाज महिला शिक्षकों तथा महिला बैरिस्टरों का अभ्यस्त हो गया है । वह महिला किण्वकों और महिला कसाइयों के लिए भी अभ्यस्त हो सकता है। लेकिन वह एक बहादुर आदमी होगा, जो यह कहेगा कि हिन्दू समाज महिला पुरोहितों और महिला सैनिकों के लिए अनुमति देगा। लेकिन यह स्त्रियों पर चातुर्वर्ण्य लागू करने का तर्कसंगत परिणाम होगा। इन कठिनाइयों के बावजूद मेरा विचार है कि एक जन्मजात मूर्ख को छोड़कर कोई भी व्यक्ति यह आशा और विश्वास नहीं कर सकता कि चातुर्वर्ण्य का फिर से सफल उद्भव होगा। ( 13 ) यह मान भी लिया जाए कि चातुर्वर्ण्य व्यावहारिक है, फिर भी मैं यह निश्चयपूर्वक कहूंगा कि यह एक बहुत ही दोषपूर्ण व्यवस्था है कि ब्राह्मणों द्वारा विद्या का संवर्धन किया जाना चाहिये, क्षत्रिय को अस्त्र-शस्त्र धारण करना चाहिए, वैश्य को व्यापार करना चाहिए और शूद्र को सेवा करनी चाहिए, हालांकि यह एक श्रम विभाजन ही था। क्या इस सिद्धान्त का उद्देश्य यह था कि शूद्र को धन सम्पति