पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/३६

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जातिप्रथा उन्मूलन / 37 कहा जा सकता। चीजें भौतिक रूप से एक से दूसरे व्यक्ति के पास पहुंच सकती है - जैसे ईंटें। इसी तरह एक समुदाय की आदतें, रीति-रिवाज, धारणाएं और विचार भी दूसरे समुदाय द्वारा अपनाए जा सकते हैं और इस तरह दोनों समुदायों में समानता प्रतीत हो । (7) हरेक जाति एक बंद निगमित संस्था की तरह है हिन्दू धर्म प्रचारमूलक धर्म था या नहीं, यह विवादास्पद है। कुछ लोगों का विचार है कि यह प्रचारमूलक धर्म कभी नहीं रहा। दूसरों की यह मान्यता है कि यह प्रचारमूलक था तथापि यह स्वीकार करना ही होगा कि किसी समय यह प्रचारमूलक अवश्य रहा होगा, क्योंकि यह अगर ऐसा न होता तो इसका प्रसार पूरे भारत में सर्वत्र न हो पाता । यह तथ्य भी अवश्य स्वीकार करना होगा कि आज यह प्रचारमूलक नहीं रह पाया है। इसलिए सवाल यह नहीं है कि हिन्दू धर्म प्रचारमूलक धर्म था या नहीं। असली सवाल यह है कि हिन्दू धर्म प्रचारमूलक क्यों नहीं रह पाया? मेरे पास इसका यह जवाब है कि हिन्दू धर्म तब से प्रचारमूलक धर्म नहीं रह गया, जब से हिन्दुओं में जातिप्रथा का उद्गम हुआ । जातिप्रथा धर्म परिवर्तन नहीं होने देती । धर्म-परिवर्तन में सिर्फ यही समस्या नहीं होती कि नई धारणाएं और नए सिद्धान्त अपना लिए जाएं बल्कि दूसरी सबसे बड़ी समस्या इसमें यह पैदा होती है कि धर्म- परिवर्तित व्यक्ति को किस जाति में स्वीकार किया जाए ? जो भी हिन्दू अन्य धर्मियों को अपने धर्म में शामिल करना चाहता है, उसे यह समस्या अनिवार्य रूप से झेलनी पड़ती है। किसी क्लब की सदस्यता तो सबके लिए समान रूप से खुली रहती है, किंतु किसी जाति विशेष की सदस्यता हर ऐरे गैरे के लिए नहीं खुली रहती । जाति का नियम ही यह है कि उसकी सदस्यता उसी जाति में उत्पन्न व्यक्ति को प्राप्त होती है । जातियां स्व-शासित होती हैं। किसी को कहीं भी यह अधिकार नहीं है कि किसी जाति को किसी बात के लिए विवश करे कि वह अपने सामाजिक जीवन में किसी नव-आगन्तुक को स्वीकार कर ले । हिन्दू समाज अनेक जातियों का समूह है, और क्योंकि हर एक जाति एक बंद निगमित संस्था की तरह है, इसलिए धर्म- परिवर्तित व्यक्ति के लिए (किसी भी जाति में) कहीं कोई स्थान नहीं है। इस प्रकार इस जातिप्रथा ने ही हिन्दुओं को हिन्दू धर्म फैलाने से रोका और अन्य धार्मिक समुदायों को इसमें लीन होने से रोका। अतः जब तक जातिप्रथा रहेगी, हिन्दू धर्म को प्रचारात्मक धर्म नहीं बनाया जा सकता और शुद्धि न केवल मूर्खता होगी, बल्कि