पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/२७

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भीमराव अम्बेडकर डॉ. भीमराव अम्बेडकर एक स्वतंत्र विचारक, अद्भुत विद्वान और भारत की महान विभूति थे। सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत डा. अम्बेडकर का संपूर्ण जीवन सदियों से शोषित-दलित मानवता के सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक उत्थान के लिए समर्पित था। उन्होंने समाज में विद्यमान रूढ़िगत मान्यताओं और विषमताओं को समूल नष्ट करने और सामाजिक न्याय और दलितों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए जीवनभर संघर्ष किया। 'जाति -प्रथा उन्मूलन' बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर द्वारा जात-पांत तोड़क मंडल, लाहौर के 1936 के वार्षिक सम्मेलन के लिए तैयार किया गया भाषण है, परन्तु यह पढ़ा नहीं जा सका था क्योंकि स्वागत समिति ने सम्मेलन को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि भाषण में व्यक्त विचार सम्मेलन के लिए असहनीय होंगे। इस विद्वतापूर्ण, शोध- परक व विचारोत्तेजक भाषण में डॉ. अम्बेडकर ने जाति प्रथा की उत्पत्ति, उसका धार्मिक सामाजिक आधार, जाति प्रथा में निहित सामाजिक उत्पीड़न व भेदभाव तथा जातिप्रथा उन्मूलन के पहलुओं पर प्रकाश डाला है। यह भाषण भारतीय चिंतन का कालजयी दस्तावेज है और हिंदू समाज की दमनकारी व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह का घोषणा पत्र है। यहां इसके कुछ अंशों को दिया जा रहा है, लेख में दिए गये शीर्षक संपादक ने अपनी तरफ से दिए हैं । जाति-प्रथा उन्मूलन मित्रो, मुझे जातपांत तोड़क मंडल के सदस्यों की स्थिति पर निश्चय ही खेद है, जिन्होंने इस सम्मेलन की अध्यक्षता करने के लिए मुझे आमंत्रित करने की महती कृपा की है। मुझे यकीन है कि अध्यक्ष के रूप में मेरा चुनाव करने पर उनसे अनेक प्रश्न पूछे जाएंगे। मंडल को इस बात को स्पष्ट करने के लिए कहा जाएगा कि उसने लाहौर में हो रहे समारोह की अध्यक्षता करने के लिए बंबई से किसी व्यक्ति को क्यों बुलाया है। मुझे विश्वास है कि मंडल को इस समारोह की अध्यक्षता करने के लिए मुझसे कहीं अधिक योग्य व्यक्ति आसानी से मिल सकता था। मैंने हिन्दुओं की आलोचना की है। मैंने महात्मा के प्रभुत्व पर संदेह प्रकट किया है, जिन्हें वे