पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/२५

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26 / जाति क्यों नहीं जाती ? अपने मानवी अधिकार छीनकर लेने में कोई कसर बाकी नहीं रखनी चाहिए..... इस बात पर कोई शायद इस तरह का संदेह उठा सकता है कि आज ब्राह्मणों की तुलना में शूद्रादि-अतिशूद्रों की संख्या करीबन दस गुना ज्यादा है। फिर भी ब्राह्मणों ने शूद्रादि-अतिशूद्रों को कैसे मटियामेट कर दिया ? कैसे गुलाम बना लिया? इसका जवाब यह है कि एक बुद्धिमान, चतुर आदमी इस अज्ञानी लोगों के दिलो-दिमाग को अपने पास गिरवी रख सकता है। उन पर अपना स्वामित्व लाद सकता है। और दूसरी बात यह है कि दस अनपढ़ लोग यदि एक ही मत के होते तो वे उस बुद्धिमान, चतुर आदमी की दाल न गलने देते, एक न चलने देते; किंतु वे दस लोग दस अलग-अलग मतों के होने की वजह से ब्राह्मणों - पुरोहितों जैसे धूर्त- पाखंडी लोगों को उन दस भिन्न-भिन्न मतवादी लोगों को अपने जाल में फँसाने में कुछ भी कठिनाई नहीं होती। शूद्रादि- अतिशूद्रों की विचार प्रणाली, मत- मान्यताएँ एक-दूसरे से मेल-मिलाप न करें, इसके लिए प्राचीन काल में ब्राह्मण पुरोहितों ने एक बहुत बड़ी धूर्ततापूर्ण और बदमाशीभरी विचारधारा खोज निकाली। उन शूद्रादि- अतिशूद्रों के समाज की संख्या जैसे-जैसे बढ़ने लगी, वैसे-वैसे ब्राह्मणों में डर की भावना उत्पन्न होने लगी। इसीलिए उन्होंने शूद्रादि-अतिशूद्रों के आपस में घृणा और नफरत की भावना बढ़ती रहे, इसकी योजना तैयार की। उन्होंने समाज में प्रेम के बजाय जहर के बीज बोए । इसमें उनकी चाल यह थी कि यदि शूद्रादि-अतिशूद्र (समाज) आपस में लड़ते-झगड़ते रहेंगे तब कहीं यहाँ अपने टिके रहने की बुनियाद मजबूत रहेगी और हमेशा-हमेशा के लिए उन्हें अपना गुलाम बनाकर बगैर मेहनत के उनके पसीने से प्राप्त कमाई पर बिना किसी रोक-टोक के गुलछर्रे उड़ाने का मौका मिलेगा। अपनी इस चाल, विचारधारा को कामयाबी देने के लिए जातिभेद की फौलादी जहरीली दीवारें खड़ी करके, उन्होंने इसके समर्थन में अपने जाति- स्वार्थसिद्धि के कई ग्रंथ लिख डाले। उन्होंने इन ग्रंथों के माध्यम से अपनी बातों को अज्ञानी लोगों के दिलो-दिमाग पर पत्थर की लकीर की तरह लिख दिया। उनमें से कुछ लोग जो ब्राह्मणों के साथ बड़ी कड़ाई और दृढ़ता से लड़े, उनका उन्होंने एक वर्ग ही अलग कर दिया। उनसे पूरी तरह बदला चुकाने के लिए उनकी जो बाद की संतान हुई, उसको उन्हें छूना नहीं चाहिए, इस तरह की जहरीली बातें ब्राह्मण- पंडा-पुरोहितों ने उन्हीं लोगों के दिलो-दिमाग में भर दी फिलहाल जिन्हें माली, कुनबी (कुर्मी आदि) कहा जाता है। जब यह हुआ तब इसका परिणाम यह हुआ कि उनका आपसी मेल-मिलाप बंद हो गया और वे लोग अनाज के एक-एक दाने के लिए मोहताज हो गए। इसीलिए इन लोगों को जीने के लिए मरे हुए जानवरों का - -