पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/२१

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22 / जाति क्यों नहीं जाती ? खाएगा, उस हर किसी को हर लड्डू के लिए जहाँ दस-दस रुपये इनाम के रूप में मिलते थे, वहाँ बीस-बीस, तीस-तीस रुपया भी देने की सामर्थ्य प्रजा में आई होती, किंतु स्वार्थी, धूर्त, स्वहित बुद्धि की वजह से या अपने स्वजातीय स्वार्थी भावना की वजह से यह विचार सूझा नहीं। किसान का कोड़ा प्रास्ताविक विद्या के न होने से बुद्धि नहीं; बुद्धि के न होने से नैतिकता न रही; नैतिकता के न होने से गतिमानता न आई; गतिमानता के न होने से धन-दौलत न मिली, धन-दौलत न होने से शूद्रों का पतन हुआ। इतना अनर्थ एक अविद्या से हुआ।........ आज के किसानों में तीन प्रकार के किसान दिखाई देते हैं - केवल किसान या कुनबी, माली और धनगर ! अब यह तीन प्रकार (भेद) होने के कारणों को खोजने से पता चलता है कि प्रारंभ में जो लोग केवल कृषि पर अपना जीविका चलाते रहे थे, वे कुलवाड़ी या कुनबी हुए। जो लोग अपना कृषि काम सम्भाल करके बागबानी करने लगे, वे माली हुए और जो लोग दोनों प्रकार के काम करके भेड़-बकरियों के झुंड पालने लगे, वे धनगर (गड़रिया, गड़ेरिया) हो गए। इस तरह अलग-अलग काम के आधार पर यह प्रकार (भेद) हुए होंगे। किंतु अब यह तीन अलग-अलग जाति मानी जाती है। इनमें आज आपस में बेटी'-व्यवहार नहीं होता। लेकिन पहले रोटी-व्यवहार आदि होता था। इससे यह सिद्ध होता है कि ये (कुनबी, माली और धनगर) पहले एक ही शूद्र किसान जाति के होने चाहिए। अब आगे इन तीनों जातियों के लोग अपना मूल किसानी धंधा मजबूरन छोड़कर पेट के खातिर तरह-तरह के व्यवसाय करने लगे। जिनके पास कुछ समय है, वे अपनी खेती की देखभाल करते हैं और अधिकांश अक्षरहीन, अनपढ़, भोले-भाले, भूखे- कंगाल, नंग-धड़ंग हैं; लेकिन वे आज भी किसान ही हैं। जिनको अब किसी प्रकार का सहारा नहीं, वे किसान क्षेत्र (देश) छोड़कर जहाँ जीविकार्जन हो सके, वहाँ-वहाँ 1. शूद्रों के कुलस्वामी जेजुरी के खंडेराव ने शूद्र (कुनबी) कुल की महालसाई और धनगर कुल की बानाबाई - इन दो जातियों की दो औरतों से ब्याह किया था, इसलिए पहले कुनबी और धनगर, इन दो जातियों में आपस में बेटी व्यवहार होता था।