पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/१९

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20 / जाति क्यों नहीं जाती ? जाती है, कभी बदन पर फटा पुराना कोई चुभनेवाला धुस्सा होता है, पाँव में पाँच- सात जगहों पर सिलाई हुई, ऊपर से रस्सी के टुकड़े से बाँधी फटी हुई जूतियाँ, वह भी जब कभी धूप हो, उसी समय पहनी जाती थीं। और धूपकाला बीत जाने के बाद दूसरे साल के धूपकाले तक लिए उसी तरह हिफाजत के साथ रखा जाता था । शेष पूरे साल - भर के लिए जूता क्या चीज होती है, यह पाँव को भी पता नहीं होता था। आगे और क्या कहना चाहिए। उन्हें पहनने के लिए हाथ- सवा हाथ लंबा चिथड़ा भी मिलना दरकिनार, बाजार से छदाम पैसे की कोई वस्तु खरीदकर लाना हो तो वह लाने के लिए उसी के एक छोर पर या साफे में बाँधना पड़ता था, लेकिन उस चीज को लाने के लिए दूसरा कपड़ा या थैला मिलना दरकिनार । यही उसके स्वयं के तन-बदन पर पहने हुए कपड़ों की असलियत होती थी । अब आप यदि उनकी औरतों के कपड़ों के बारे में पूछेंगे, तो उनके बारे में कुछ कहने-बताने में बड़ा संकोच हो रहा है। वह बेचारी उसके साथ क्या समझकर अपना दिन गुजार रही है, वही जानती है; किंतु उसकी ओर से उसे तिलभर भी सुख नहीं मिलता। उसको कोई मोटा- जाड़ा-धुस्सा करीबन दो या ढाई रुपये कीमत पर मिल जाए, तो उन्हें एक-दो साल तक चलाना पड़ता था। उनको स्नान करने के बाद बदलने के लिए दूसरी साड़ी या कोई दूसरा चिथड़ा भी नहीं मिलता था। लेकिन उनके पीछे इतना काम लगा रहता था कि वही साड़ी या धुस्सा, उसी को चार-चार या पाँच-पाँच दिन तक बिना धोए ही पहनना पड़ता था। उन्हें जब कभी काम से फुरसत मिली, तो नदी, नाला या तालाब पर जाकर पहने हुए धुस्से या साड़ी का आधा हिस्सा बड़ी लज्जा से दुखी होकर शरमाते हुए तन-बदन से उतार लेना पड़ता था और वह उसे पहले धो डालती थी। उसी प्रकार जब वह साड़ी या धुस्सा जीर्ण होकर फटने लगता है तब उस फटे हुए एक हिस्से को पहले सिलाती है। बाद में उसे पहनने के बाद दूसरे हिस्से को सिलाती है। आगे वही साड़ी या धुस्सा फटते- फटते उसका सात या आठ हाथ लंबा चिथड़ा बच जाता है। लेकिन उस चिथड़े पर इतने चिथड़े लगे हुए रहते हैं कि मूल में यह किस रंग की साड़ी या धुस्सा था, यह बताना भी मुश्किल हो जाता था। इस तरह अपने तन पर अपर्याप्त धुस्से का चिथड़ा या साड़ी का चिथड़ा बड़े ढंग से पहनकर, सिर पर गोबर का टोकरा रखकर भरे बाजार में जाना पड़ता था । अफसोस ! यह कितने दुख की बात है, सच बताइए ! यह हकीकत बयान करते समय सचमुच में शूद्र लोगों के दिल के टुकड़े- टुकड़े होते होंगे, इसमें कोई शक नहीं। उन्हें ऐसा लगता होगा कि हम लोगों ने फिजूल जन्म ग्रहण किया है। बेहतर होता यदि हम पैदा होते ही मर गए होते।