पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/१८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इशारा / 19 ब्राह्मण राजा सैकड़ों साल तक प्रजा के ऊपर कर (लगान) का कमरतोड़ बोझ लादकर करोड़ों-करोड़ रुपया खा गए लेकिन उसका एक छदाम तो कम-से-कम ईश्वर की सौगंध खाकर प्रजा के कल्याण के लिए खर्च करना था। अफसोस है, प्रजा की ओर से वसूल किए पैसे का उन्होंने जिस तरह गलत उपयोग किया, वे सभी बातें बयान करने में हमें स्वयं लज्जा आती है। उन्होंने अपनी जाति के ब्राह्मण- पंडा-पुरोहितों के लिए जगह-जगह पर देवी-देवताओं के नाम संस्थानों-मठों- मंदिरों की स्थापना करके वहाँ उन्होंने उनके लिए अन्न - छत्र भी शुरू कर दिए । प्रजा की ओर से पैसा वसूल होने के तुरंत बाद ही ब्राह्मण- भोजन के निमित्त फलाने संस्थान के लिए दो लाख रुपये, फलाने संस्थान के लिए पचास हजार रुपये, इस तरह के प्रस्ताव करके पैसा बाँट दिया जाता था। हर दिन पर्वती' जैसे संस्थान (मंदिर) पर तो सिर्फ ब्राह्मणों को घी-रोटी का भोजन और ऊपर से दस-दस रुपया दक्षिणा दिया गया। आज क्या है ? ब्राह्मणों को लड़ का भोजन और ऊपर से बीस- बीस रुपया दक्षिणा दिया गया। आज ब्राह्मणों को केशर-भात का भोजन और ऊपर से हर एक को मुट्ठी भर के रुपया दक्षिणा दिया गया। इसके अलावा कई ब्राह्मणों को शाल- - जोड़ा, कइयों को साफा, कइयों को धोती-जोड़ा, कइयों को इच्छानुरूप वर्षासन देने की नियुक्तियाँ होती थीं। इस तरह हर दिन ब्राह्मणों को इच्छानुरूप, पर्याप्त मात्रा में भोजन दिया जाता था और ऊपर से बेहिसाब दक्षिणा और बख्शीश दिया जाता था, इससे गरीब प्रजा को बहुत ही कष्ट सहने पड़ते थे। इस तरह ब्राह्मण-शासक प्रजा से लगान (कर) के रूप में वसूल किए गए सारे रुपये-पैसों की, धन-दौलत की बर्बादी कर देते थे। - सचमुच उस समय प्रजा की क्या यह स्थिति थी कि वह अपने पेट का, अपने बाल-बच्चों का गुजारा करके सरकार को कर दे सके ? इस संबंध में कुछ कहने की गरज ही नहीं। उनकी जो भी स्थिति थी, उसको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। बेचारे गरीब प्रजा को रात और दिन लहलहाती धूप में, बरसती बारिश में और चलनेवाली सर्दी के दिनों में समान रूप से खेत-खलिहान में ही मेहनत करते हुए, खून-पसीना बहाते हुए रहना पड़ता था। उनको अपना और अपने बीवी-बच्चों का तन-बदन ढकने के लिए जोड़ा-मोटा कपड़ा तथा पेट की आग बुझाने के लिए रूखा-सूखा भोजन जुटाने में भी बड़ी हाय-तौबा मचती थी। उनके सिर पर क्या रहता था ? फटी- पुरानी बीस या पच्चीस हाथ लंबी चिंदी जिसको फेंटा कहने में बड़ी लज्जा आती है। प्रजा का नंगा बदन पूरा धूप से काला और पूरी बरसात गुजर 1. पूना का एक प्रसिद्ध हिंदू-मंदिर।