पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/१६

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धर्म / 17 ऐसा आया कि उनको मिट्टी फाँकनी पड़ी - और आगे भी उनके हाल इसी तरह होंगे, उनका निश्चित रूप से विनाश होगा। यशवंतः लड़के- बच्चों का अपने माँ-बाप की आज्ञा का पालन करना क्या यह भी उनका धर्म नहीं है ? जोतीराव: जब हम पैदा हुए उस समय हम बहुत छोटे थे, बच्चे थे, बहुत दुर्बल थे, अबोध नन्हे-मुन्ने थे उस समय हमारे जन्मदाता माँ-बाप ने हमें पाला- पोसा, हमें अच्छी शिक्षा दिलवाई - ये उनके हम पर अनंत, अमर्यादित उपकार हैं। उसी प्रकार जब हमारे माँ-बाप बुढ़ापे की वजह से दुर्बल-अपाहिज बन जाते हैं, तब हम सभी बाल-बच्चों को बड़ी कृतज्ञता के साथ, बड़ी लगन से उनकी सेवा, पालन-पोषण करना चाहिए। इस तरह उनके उपकारों से मुक्त हुए बगैर बच्चे और माँ-बाप में देन-लेन का व्यवहार समाप्त नहीं होता। यशवंत: फिर दुर्बल और निराधार माँ-बाप का पालन-पोषण करके उनके उपकारों से मुक्त हुए बगैर औरत का त्याग करके बाल ब्रह्मचारी और ताबूत में रखे शव का-सा स्वाँग रचकर बदन को भभूत लगाकर फोकट के खानेवाले वैरागी कैसे बनते हैं ? इसके बारे में आपका क्या कहना है ? जोतीराव : इसके बारे में औरत का त्याग करनेवाले बाल ब्रह्मचारी को और वैरागी को नौ माह तक अपने पेट में रखकर जो उसका पालन-पोषण करते हैं उसके उन माँ-बाप से पूछो तो आपको इसका सही जवाब मिल जाएगा। लेकिन जब कभी इस धरती के सभी नर-नारी मुक्ति पाने की इच्छा से बाल ब्रह्मचारी, बाल ब्रह्मचारिणी, वैरागी और वैरागन आदि सीधे साधु-साधुनियों का स्वाँग रचाकर रात और दिन काल्पनिक सनातन शेषशायी का नाम स्मरण करने लगें तो उन सभी लोगों के प्रयत्न दो-चार महीने के अंदर-अंदर भूख-प्यास से बेकार हो जाएँगे या नहीं? क्योंकि वे सभी लोग किसी की मेहनत पर अपना निर्वाह कर लें, इतनी गुंजाइश ही नहीं रहती । सारांश, नौकर के मालिक के पास नौकरी करने को नौकर का धर्म कहा जाता है, वैश्या का किसी नौजवान को अपना आशिक बनाने का काम करना यह आशिक का धर्म कहा जाता है, आर्यभट्ट ब्राह्मणों का शूद्रादि-अतिशूद्रों को नीच मानना इसको आर्य ब्राह्मण धर्म कहते हैं, भिक्षा माँगना ब्राह्मणों का धंधा है लेकिन उसको ब्राह्मणों का धर्म कहा जाता है। इस प्रकार धर्म शब्द के कई प्रकार के अर्थ होते हैं। धूर्त भट्ट ब्राह्मण अपना स्वार्थ हासिल करने के लिए जैसा मौका आता है वैसा उसका अर्थ करके अपना हित साधन कर लेते हैं ।