पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/१३

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14 / जाति क्यों नहीं जाती ? यशवंतराव : आप जैसा कहते हैं उस तरह कुछ साबित नहीं किया जा सकता। किंतु आपके इस सिद्धांत के अनुसार भंगिन (हलालखोर) की भी जाति नीच है या नहीं? क्योंकि वह हमेशा बहुत ही निचले स्तर का काम करती है। जोतीराव : तुमको मालूम होगा कि हम दोनों के बचपन में हमारा पाखाना साफ करने का काम हम दोनों की माताओं ने किया है, फिर इस आधार पर उनको हलालखोरनी या भंगिन कहा जा सकता है ? यशवंतराव : हम दोनों की माताओं ने दूसरे बचपन में हमारा पाखाना साफ किया है, यह सच है। लेकिन उनको नीच कौन कह सकता है ? अपनी माँ को नीच कहनेवाला इस धरती पर शायद ही कोई होगा, लेकिन मानव प्राणियों में क्या उनके गुणों के आधार पर जातिभेद नहीं ठहराया जा सकता ? इसके बारे में आपका क्या कहना है ? जोतीराव : मानव प्राणियों में उनके गुणों के आधार पर जातिभेद ठहराया नहीं जा सकता है, क्योंकि मनुष्यों में कई लोग ऐसे हैं जो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं। और वे अपने-अपने स्वभाव के अनुसार तेज बुद्धि के होने के कारण होशियार और गुणवानों के चुनाव के मौके पर सफल होकर बड़े-बड़े पदों को सँभालने लायक होते हैं। और कुछ लोग अपने बाल-बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए बहुत ही मेहनत करते हैं लेकिन उन लड़कों के स्वभाव से जड़ बुद्धि होने की वजह से वे मूर्ख और निष्क्रिय होकर हर तरह के गलत-सलत काम करने के लिए मजबूर होते हैं। इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि अच्छे गुणों या बुरे गुणों का संबंध हमेशा खानदान या वंश परंपरा से नहीं होता । सद्गुणी बृहस्पति जैसे लोगों के बच्चे भी स्वभाव से कभी-कभी सद्गुणी नहीं होते। इसी प्रकार धूर्त आर्य ब्राह्मणों के बच्चे हमेशा ही शंकराचार्य जैसे बुद्धिमान पैदा नहीं होते। इसी तरह अतिशूद्र चमार और भंगी के सद्गुणी बच्चे अवसर पा गए तो शंकराचार्य से भी बढ़कर बुद्धिमान और महामुनि नहीं होंगे, ऐसा कोई भी समझदार आदमी नहीं कह सकता। धर्म यशवंतः मजदूरी के रूप में अपने सभी ग्राहकों के कपड़े धोकर उस पर अपना करना यह धोबी का धर्म है या नहीं ? जोतीराव : मजदूरी के लिए हम सभी के कपड़े धोकर उस पर यदि धोबी अपना