पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/१२०

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जाति क्यों नहीं जाती ? / 121 । पिछड़ी जातियों को पूर्ण सामाजिक समानता दिलाने का लक्ष्य, आर्थिक समानता हासिल करने के लक्ष्य से जोड़कर संघर्ष चलाने से ही हासिल किया जा सकता है। आर्थिक जनवाद के लिए जरूरी है कि सभी जातियों के शोषितों- पीड़ितों की विराट एकता कायम हो । दलित उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष और उन्हें आरक्षण सहित विभिन्न राहतें दिलाने के आंदोलन को इस तरह चलाना होगा कि, सभी जातियों के शोषितों की एकता का निर्माण किया जा सके। पूंजीवाद तो सवर्णों को भी बेकारी, गरीबी और बदहाली का शिकार बना रहा है। पूंजीवादी दल, बेकार और बदहाल सवर्ण जनता के असंतोष को आरक्षण के नाम पर दलित और पिछड़े समुदाय की शोषित जनता के खिलाफ मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इससे पूंजीवाद तो सुरक्षित हो जाता है मगर शोषितों की एकता टूट जाती है। इसीलिये वे पिछड़े तबके भी जो सामाजिक रूप से उत्पीड़ित न होकर मुख्यतः आर्थिक शैक्षणिक पिछड़ेपन से त्रस्त हैं- आरक्षण के हकदार हैं। किन्तु इन तबकों की ऊपरी सतह, जो अपना विकास कर चुकी है, उसे आरक्षण से बाहर रखना उचित है ताकि यह लाभ इन तबकों के भी वास्तविक गरीबों तक पहुंचे। इसी के साथ ही, आर्थिक गरीबों, चाहे वे सवर्ण ही क्यों न हों के एक हिस्से को भी आरक्षण दिया जाना चाहिए। किन्तु जहां तक दलितों का प्रश्न है उन्हें समूचे तौर पर आरक्षण देते रहने की जरूरत है क्योंकि सिर्फ आर्थिक-शैक्षणिक हैसियत बढ़ जाने से उनका सामाजिक अपमान किया जाना बंद नहीं होता। जब तक ऊंच-नीच की विचारधारा कायम है उनका यह अपमान जारी रहने वाला है। अब तो भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी आरक्षण के संबंध में इसी नीति को जायज करार चुका है। लेकिन दुर्भाग्य से, जातिवादी ध्रुवीकरण के आधार पर राजनीति करने पर जोर बढ़ता जा रहा है । दलित व पिछड़ी जातियों के नेता, पूर्ण आर्थिक व सामाजिक समानता के लक्ष्य के लिए संघर्ष करने के बजाए वोट बैंक की राजनीति कर, जाति चेतना को और मजबूत कर रहे हैं। शोषितों की एकता बिखर रही है । और जाति व्यवस्था को खत्म करने की मंजिल दूर खिसकती जा रही है। किन्तु इस संकीर्णतावादी जातिवादी राजनीति को बेनकाब करने के बावजूद, इस राजनीति की तरफ आकर्षित हो रही दलित व पिछड़ी जनता की मुक्ति की जो भावनाएं हैं, उन्हें अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। एक ही रास्ता है कि भूमि सुधार और आर्थिक समानता के लिये सभी शोषितों की व्यापक एकता बनायी जाये । यह एकता तभी बन है जब हम जाति पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर सामाजिक उत्पीड़न के खिलाफ समझौता हीन संघर्ष