पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/११९

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120 / जाति क्यों नहीं जाती ? जीवन पर भूस्वामियों व साहूकारों के प्रभुत्व से मुक्ति दिलाये बिना दलित जातियों को सामाजिक बराबरी नहीं मिल सकती थी। पेशे के चुनाव और आर्थिक विकास की स्वतंत्रता दिये बगैर दलित जातियों की सामंती व शोषक प्रभुओं पर पराधीनता को खत्म करना असंभव था। किन्तु यह सब नहीं हुआ क्योंकि पूंजीवादी - भूस्वामी शासक वर्ग यह सब कर नहीं सकते थे। परिणामत: भारतीय समाज में जाति व्यवस्था हमारी प्रगति के रास्ते में रोड़ा बनी हुई थी और आज भी बनी हुई है। एक सामाजिक रूढ़ि और सामाजिक चेतना होने के बावजूद वह मार्क्स के शब्दों में एक 'भौतिक शक्ति' की हैसियत रखती है। मिसाल के तौर पर प्राचीन काल में जन्म से जुड़ी जाति और जाति से जुड़े पेशों के बंधनों के कारण विभिन्न व्यवसायों व श्रम कौशल के क्षेत्रों में श्रम की मुक्त आवाजाही को जाति प्रथा रोके रही । एक दार्शनिक बनने की क्षमता रखने वाला लुहार, लोहे का काम करने के लिए मजबूर रहा और एक लौह विशेषज्ञ बनने की कि क्षमता रखने वाला ब्राह्मण लुहार के पेशे को अपनाने से रोक दिया गया। प्रतिभाओं के मुक्त विचरण पर प्रतिबंध की यह व्यवस्था भारतीय समाज के वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक विकास की एक प्रमुख बाधा बन गयी। इस प्रकार सिर्फ चेतना होते हुए भी इसने भौतिक शक्ति के रूप में हमारे सामाजिक विकास को प्रभावित किया। दूसरी ओर आध्यात्मिक व सामाजिक अधीनता की यह व्यवस्था सामंतवाद को भारत में लंबे समय तक टिकाये रखने की संजीवनी बन गयी। जब हमारे देश में सामंतवाद शिखर पर था तब पश्चिम में लोग भेड़ें चराया करते थे। मगर हमारे यहां सामंतवाद खिंचता ही चला गया जबकि पश्चिमी समाज, सामंतवाद से गुजरकर पूंजीवाद में प्रवेश कर गया । दोहरी चोट जाति व्यवस्था एक तरफ तो असमान आर्थिक क्षमताओं - विशेषकर भूमि संबंधों पर टिकी है और दूसरी ओर रुढ़िपंथी व कूप मंडूक सामंती विचारधारा से उसका पोषण हो रहा है। इन दोनों पर चोट किये बगैर जाति व्यवस्था को खत्म कर पाना नामुमकिन है। इसीलिए आरक्षण की व्यवस्थाओं ने यद्यपि, दलित व पिछड़ी जातियों के कुछ हिस्सों को, अपनी हैसियत उठाने में मदद की, किन्तु समूचा दलित समुदाय आज भी सामाजिक रूप में उत्पीड़ित है और समूचा पिछड़ा समुदाय आर्थिक व शैक्षणिक रूप से दलित स्थिति में खड़ा है। इसीलिये, आरक्षण की इन व्यवस्थाओं को जारी रखना आज भी अत्यावश्यक बना हुआ है। लेकिन दलित और