पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/११२

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शैलेन्द्र शैली शैलेन्द्र शैली एक समर्पित, संघर्षशील राजनीतिक कार्यकर्ता और चिंतक थे । वे ऐसे समाज की परिकल्पना करते थे जिसमें मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण न हो, जिसमें समाज के सभी लोग सम्मानपूर्वक जी सकें । वे शोषण विहीन और वर्गविहीन समाज के निर्माण के लिए प्रयासरत रहे। ऐसे समाज के लिए यह आवश्यक है कि मेहनत करने वाले लोगों में एकता बने । जाति प्रथा समाज को बांटती है और इससे इंसानियत को कम किया है। 'जाति क्यों नहीं जाती ?' उनका लेख जाति प्रथा के बारे में समझ बनाने में महत्वपूर्ण है। जाति क्यों नहीं जाती ? नेटीजनों की डॉट काम दुनिया में हमारा भारत अब भी सड़ती हुयी वर्ण व्यवस्था को गले लगाये खड़ा है। विज्ञान आया, तकनीक आयी, उद्योग आये, लोकतंत्र आया, धर्मनिरपेक्षता आयी - परन्तु भारतीय समाज से जाति नहीं गयी । आधुनिककीकरण के बावजूद आखिरकार जाति क्यों नहीं जाती ? इसलिए कि भारत में पूंजीवाद तो आया मगर उसने पूंजीवाद से पहले की सामंती दासत्व की व्यवस्थाओं की दल-दल साफ नहीं की। पूर्व पूंजीवादी आर्थिक- सामाजिक रिश्तों को राख किये बगैर, उन्हीं पर औद्योगिक पूंजीवाद की पर्ते चढ़ायी जाती रहीं। जाति एक भ्रम है, एक दंभ है, एक मानसिक दासता है, एक मिथक है, एक अंधविश्वास है, एक रूढ़ि है। जाति एक चेतना है। मार्क्स ने कहा कि चेतना जब हृदय में घर कर जाती है तो भौतिक शक्ति बन जाती है। आधुनिकीकरण के बावजूद जाति की चेतना के न मिट पाने की एक वजह यही है । ढाई हजार साल में इस चेतना ने लोगों के दिलों में घर कर लिया है और वह स्वयंभू शक्ति बन गयी है। मनुष्य के चेतना जगत में, लंबे और दीर्घकालिक वैचारिक युद्ध के बाद ही उसकी जड़ें उखड़ सकती हैं।