पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/१०९

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110 / जाति क्यों नहीं जाती ? पूंजीवादी ढांचे के अंदर ही सीमित रखें। इस तरह सबसे दलित वर्गों की ओर से वर्तमान सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को जो बुनियादी चुनौती दी जा सकती थी उसका रास्ता रोक दिया जाता है। सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष कहने की जरूरत नहीं कि आज, जबकि अछूतों तथा कुछ दूसरे तबकों के खिलाफ सरेआम पक्षपात किया जाता हो, जनवादी और मजदूर आंदोलन नौकरियों में आरक्षण तथा दूसरी सुविधाओं पर आपत्ति नहीं कर सकता । मेहनतकशों की एकता को मजबूत बनाने के लिए इनका समर्थन करना ही होगा। इसके साथ ही साथ, मेहनतकशों के सभी हिस्सों को - चाहे वे किसी भी जाति के हों – यह सिखाना होगा कि इन झुनझुनों से कोई एक समस्या भी हल होनेवाली नहीं है। उनसे न तो दलित वर्गों की हालत बेहतर होगी और न उनकी बेकारी की समस्या ही हल होगी। इनसे मुख्य शत्रु की- भूस्वामियों तथा इजारेदारों- की ओर से शोषितों का ध्यान जरूर बंट सकता है। वर्तमान अनुकूल परिस्थितियों में आम वर्ग संघर्ष तभी चल सकता है जबकि जनवादी आंदोलन तथा किसान सभाएं जातिवादी प्रभुत्व के खिलाफ निरंतर विचारधारात्मक प्रचार करें और जातिगत उत्पीड़न के सवाल पर सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करें । ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ग संघर्ष में तेजी शुरू भी हो चुकी है। अछूतों पर होनेवाले हमलों में से अनेक की वजह यह है कि वे पुराने भूदासों की तरह काम करने से इनकार करने लगे हैं और आधुनिक मजदूरों की तरह तय शर्तों पर काम करना चाहते हैं। अछूतों पर अत्याचारों को जन्म देनेवाले अनेक विवादों के पीछे मजदूरों का गतिशीलता, बेहतर मजूरी की मांग, आने जाने तथा भूमि पर खेती करने की स्वतंत्रता की मांग आदि भी एक कारण होती है। इन विवादों से छुआछूत के पीछे का असली आर्थिक आधार साफ प्रकट हो जाता है। ये संघर्ष वर्ग संघर्ष का ही हिस्सा है और एकजुट होकर लड़ने की दरकार रखते हैं। आगे बढ़ते हुए ट्रेड यूनियन आंदोलन को इस प्रश्न पर अपनी कमजोरी को दूर करके अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह निभानी होगी। पदोन्नतियों तथा बकाया पदोन्नतियों के सवाल पर ट्रेड यूनियन आंदोलन को एक नयी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। उसे वर्गीय एकजुटता की भावना को सुरक्षित रखते हुए इस समस्या का हल निकालना होगा। इस नयी स्थिति की मांग है कि मेहनतकशों के बाकी हिस्सों से अलग-थलग