पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/१०८

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जाति, वर्ग और संपत्ति के संबंध / 109 चुके हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग के लिए नौकरियों में आरक्षण के विरोध में हो रहे उन आंदोलनों पर नजर डालिए जिनमें तोड़-फोड़ की जा रही है, वाहनों की होली जलायी जा रही है, और रेल की पटरियां उखाड़ी जा रही हैं। कुछ ऊंची जातियों के लोगों का यह विरोध प्रदर्शन समस्तीपुर में उस चुनाव के दौरान अपनी अति पर पहुंचा जब ऊपर से नीचे तक करीब-करीब ऊंची जातियों से ही भर्ती किये गये अफसरों ने इंदिरा कांग्रेस के उम्मीदवार की (जोकि सवर्ण था) हर तरह से मदद तो की ही, जनता पार्टी की सरकार के एक मंत्री को गिरफ्तार करने की धमकी तक दी । सरकारी नीतियां निश्चित रूप से इस आम संघर्ष को मोड़कर जातियों के झगड़े की शक्ल देने में अपना योगदान दे रही हैं । पूंजीपति- भूस्वामी वर्ग इस तरह अपने वर्गीय शासन को मजबूत कर रहा है। जमीन, नौकरियों, सरकारी सुविधाओं कर्जों तथा शिक्षा के अवसरों के लिए वह प्रतिद्वंद्विता खासी तेज हो गयी है जो आसानी से जातिवादी रंगत हासिल कर लेती है। पिछली जातियों की समस्याओं- अछूतों तथा आदिवासियों के लिए नौकरियों में आरक्षण, पदोन्नतियों में आरक्षण तथा पदोन्नतियों में पिछली कमी को पूरा करने आदि-ने मेहनतकशों के बीच ही आपसी टकराव पैदा कर दिया है जिसका इस्तेमाल करके निहित स्वार्थ शोषित वर्ग की एकता में फूट डाल रहे हैं। भूस्वामियों तथा इजारेदारों के स्वार्थों के साथ बंधी हुई, पूंजीपति- भूस्वामी सरकार, दमित जातियों के कुछ हिस्सों को छोटी-छोटी राहतें सरकारी नौकरियों में आरक्षण, कालेजों के दाखिलों में सीटों, शिक्षा में कुछ सुविधाओं तथा पदोन्नतियों में आरक्षण के आश्वासनों आदि को देकर गरीबी और बेरोजगारी की चुनौती को गलत दिशा में मोड़ने की कोशिश कर रही है। जिस तरह की स्थितियां हैं, उनमें इन झुनझुनों से न बेरोजगारी तथा गरीबी की समस्याएं हल हो सकती हैं और न अछूतों तथा दूसरी दलित जातियों की स्थिति ही सुधर सकती है। इतना जरूर है कि इनसे इन समुदायों के कुछ व्यक्तियों को थोड़ी राहत मिलेगी, अपनी प्रगति में उनका विश्वास बढ़ेगा, लेकिन उनका सामाजिक दर्जा इससे नहीं बदलेगा। जहां तक शासक वर्गों का सवाल है, ये रियायतें उनके लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। पहली बात तो यह है कि इनके जरिये वे नौकरियों आदि की आम प्रतियोगिता में मेहनतकशों के एक हिस्से को दूसरे के खिलाफ भिड़ा । दूसरी बात यह है वे । कुछ तबकों में यह भ्रम पैदा कर देते हैं कि सरकार उनकी सच्ची हमदर्द है और उन्हें चाहिए कि अपने संघर्षों को