पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/१०६

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जाति, वर्ग और संपत्ति के संबंध / 107 सामंती सरकारें जातियों के बीच परस्पर संघर्ष का रूप देने में लगी हुई हैं। पूंजीवादी रास्ते पर चलने के कारण आजादी के बाद के तीस सालों में ग्रामीण तथा शहरी दोनों ही क्षेत्रों में गरीबी और बेकारी भयानक रूप से बढ़ी है। लाखों लाख लोग जो जाति के हिसाब से कुछ भी रहे हों, आज तबाह हो रहे हैं जबकि दूसरी ओर, जमीन और पूंजी चंद हाथों में इकट्ठी हो रही है। कांग्रेसी शासन के तीस सालों के ‘भूमिसुधारों' और बड़े पैमाने पर बेदखलियों के परिणामस्वरूप अछूतों के अलावा भूमिहीनों की अपार संख्या भी दिखायी दे रही है। पांचवी योजना के मसौदे में लिखा है : • रिजर्व बैंक के आकड़ों के अनुसार, ग्रामीण परिवारों की संपत्ति (मुख्य खेती की जमीन) के कुछ हाथों में केंद्रित होने का अनुपात 1960-61 में 0.65 था जो 1971-72 में बढ़कर 0.66 हो गया। 1971-72 में ग्रामीण परिवारों के सबसे गरीब 10 प्रतिशत के पास कुल संपत्ति का 0.1 प्रतिशत हिस्सा था जबकि सबसे संपन्न 10 प्रतिशत के पास कुल संपत्ति का आधे से ज्यादा हिस्सा था यही हाल 1961-62 में भी था ।" इस तरह की संपत्ति के चंद हाथों में इकट्ठा होने का मतलब यही है कि आदिवासियों तथा अछूतों के पास जो कुछ जमीन थी भी उसके छिन जाने के अलावा सभी जातियों के किसानों की बड़ी भारी संख्या को अपनी जमीनों से हाथ धोना पड़ा है। गरीब लोगों से उनके उत्पादन के साधनों को छीनना पूंजीवादी रास्ते की विशेषता है इससे आज हजारों लोग तबाह होकर सड़कों पर मारे मारे फिर रहे हैं । उक्त योजना के मसौदे में यह भी लिखा है : ग्रामीण श्रमशक्ति को पूरा रोजगार न मिलने की वजह है... प्रतिद्वंद्वितापूर्ण आधुनिक उद्योगों द्वारा, दस्तकारों तथा शिल्पियों को लगातार उखाड़ फेंका जाना। इसी तरह शहरी बेरोजगारी सिर्फ उद्योगों से निकाले गए मजदूरों, श्रमशक्ति में शामिल होनेवाले नये लोगों तथा आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों से उखड़कर आनेवाले मजदूरों तक ही सीमित नहीं है बल्कि 'अनौपचारिक क्षेत्र' में लगे खुद रोजगार तथा आकस्मिक रोजगार के जरिये अपनी जीविका कमाने वाले लोग भी इसमें शामिल हो रहे हैं भारत में गरीबी की स्थिति का हिसाब लगाने की कोशिशें की गयी हैं और इसके लिए इस्तेमाल किए गए भिन्न-भिन्न आधारों पर, कुल आवादी का 40 से 60 प्रतिशत हिस्सा न्यूनतम स्वीकार्य स्तर से नीचे की जिंदगी गुजार रहा है। कैलोरी उपभोग का