पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/१०५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

106 / जाति क्यों नहीं जाती ? को आगे नहीं ले जाया जा सकता। इस विचारधारात्मक संघर्ष को, भूमि संबंधों सहित, वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव की जरूरत के साथ तो जोड़ना ही होगा। इसके अलावा इस संघर्ष को तभी सफल बनाया जा सकता है जबकि आमतौर पर धर्म तथा खास तौर पर हिंदू धर्म की सामाजिक-आर्थिक भूमिका को ठीक तरह से मजदूर वर्ग के सामने रखा जाय। आज जाति-व्यवस्था के खात्मे के सवाल को, इस जमाने के उस मुख्य संघर्ष से अलग-थलग करके हिंदू समाज के सुधार के सवाल की तरह पेश नहीं किया जा सकता जो कृषि-क्रांति का संघर्ष है, जो इज़ारेदारों और साम्राज्यवादियों द्वारा किये जा रहे शोषण के खात्मे का संघर्ष है, जो समाजवाद की ओर ले जाने वाले जनता के जनवादी राज्य की स्थापना का संघर्ष है। हमारे दौर के मुख्य वर्ग संघर्ष से काटकर, जाति विरोधी संघर्ष चलाने की जितनी भी कोशिशें हुई हैं, नाकाम रही हैं और उनकी उपलब्धि बहुत ही अल्प रही है। यह एक बार फिर साबित हो गया है कि जातिवाद विरोधी संघर्ष को अलग- थलग करके नहीं चलाया जा सकता, इस संघर्ष को वर्तमान दौर के जनवादी आंदोलन तथा वर्ग संघर्ष का हिस्सा बनाकर ही चलाना होगा। जाति पर आधारित असमानता और अन्याय आज आधुनिक वर्गीय अन्याय का अविभाज्य हिस्सा बन चुके हैं। इन अन्यायों के खात्मे के लिए सारे शोषित तबकों की, चाहे वे किसी भी जाति के क्यों न हों, एकजुट होकर लड़ना होगा । शुरू-शुरू में यह काम मुश्किल लग सकता है क्योंकि जब एक अछूत जिसे कि गैरअछूत गरीब किसान के साथ एकजुट होना है उससे मिलता है तो उसे अक्सर वह गरीब किसान या तो जमींदार की या किसी ऊंची जाति की नुमाइंदगी करने वाले एक आक्रामक व्यक्ति जैसा दीखता है। इसी बिंदु पर किसान आंदोलन की भूमिका महत्वपूर्ण हो उठती है जिसके तहत किसान वर्ग के आम दुश्मन, जमींदार आदि के खिलाफ, अछूतों, खेतमजदूरों, गरीब किसानों आदि को एकजुट होना है। इस संघर्ष के दौरान ही जातियों के बीच के फासले खत्म होंगे। जातिव्यवस्था के विरोध में प्रचार और किसानों की शिक्षा इस काम में मदद पहुंचाएगी। नयी स्थिति आजादी के बाद के तीस सालों ने और इस दौरान के कांग्रेस शासन ने एक नयी स्थिति पैदा कर दी है यह स्थिति चिल्ला-चिल्लाकर बता रही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ग संघर्ष तेज हुआ है और उसे जमींदार व उनके पिट्ठू तथा पूंजीवादी-