पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/१०४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जाति, वर्ग और संपत्ति के संबंध / 105 और सवर्ण किसान, एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर लड़े थे। कृषि क्रांति पर अगर कम्युनिस्ट जोर देते हैं तो वे इसके जरिये जातिवाद के आधार को, उसके गढ़ को भी; नेस्तनाबूद करना चाहते हैं । मजदूर वर्ग जो आज भी काफी हद तक जमीन से जुड़ा हुआ है, पूरी तरह से एक आधुनिक वर्ग की भूमिका नहीं अदा कर पाया है। यह वर्ग अपनी असली शक्ल अख्तियार करने के दौर में है, लेकिन इसने रोजमर्रा के संघर्षों में हड़तालों में शिरकत करने वाले सभी समुदायों व सभी जातियों के अपने लोगों को वर्ग के रूप में संगठित करने की भारी क्षमता का परिचय दिया है। इसी वर्गीय चेतना ने, जाति या संप्रदाय के आधारों पर ट्रेड यूनियनों को संगठित करने की कोशिशों को बार- बार शिकस्त दी है। शुरू के वर्षों से लगातार जातिवाद तथा सांप्रदायिकता के विरोध में कम्युनिस्टों द्वारा किये गये प्रचार ने इस वर्गीय एकजुटता को पैदा करने में मदद की है । सुधारवादी प्रभाव इस सबके बावजूद जातिगत तथा सांप्रदायिक भेदभाव अभी तक बरकरार हैं और प्रतिक्रियावादी उद्देश्यों के लिए उनका इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा, शहरों में तथा मजदूरों के बीच इस दिशा में की गयी प्रगति के धीमे होने के दूसरे कारण भी हैं। मजदूर वर्ग का एक अच्छा खासा, यहां तक कि एक बड़ा हिस्सा, राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग और उसके समर्थकों के वैचारिक प्रभाव में रहा है। हड़तालों तथा संघर्षों को चलाते हुए वे समाज के भीतर के वर्गीय संबंधों, राजसत्ता तथा सरकार के वर्गीय चरित्र को छिपाने का खास तौर पर ध्यान रखते हैं और इस तरह संयुक्त संघर्षों को घटाकर शुद्ध अर्थवाद में परिणत कर देते हैं । इसके अलावा, किसानों तथा दमित वर्गों की हालत से मजदूर वर्ग पूरी तरह से उदासीन है। ये दोनों चीजें मिलकर जातिवादी प्रभाव से मजदूर वर्ग की मुक्ति का रास्ता रोकती हैं। जो भी हो, यह तो मानना पड़ेगा कि किसी हद तक जातिवाद तथा सांप्रदायिकता के खिलाफ विचारधारात्मक संघर्ष की उपेक्षा होती रही है। जहां तक सी पी आइ (एम) का सवाल है, उसने अपने अभी हाल के प्लेनम में, सामंती तथा अर्द्धसामंती विचारधाराओं के खिलाफ लड़ाई को फिर से बड़े पैमाने पर शुरू करने का फैसला किया है। इस तरह के संघर्ष के बिना तथा जातिवादी उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन के सक्रिय हस्तक्षेप के बिना, आर्थिक संघर्षों के बीच पैदा होने वाली आम चेतना