पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/१०३

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104 / जाति क्यों नहीं जाती ? आगे चलकर उन्होंने अपने अनुयायियों में बौद्ध धर्म में दीक्षित होने के लिए कहा ताकि हिंदू समाज के अन्यायों से मुक्त हुआ जा सके। लेकिन उनके बौद्ध धर्म में प्रवेश कर जाने से असमान भूमि-संबंधों पर आधारित भयावह सामाजिक वास्तविकता में कोई तब्दीली नहीं आयी । अत्याचारों की हाल की ही घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि प्रेम और समता की खोज में कामयाबी हासिल नहीं हो पायी है। स्थिति का सबसे दुखद पहलू यह रहा है कि सबसे दमित तबकों के बीच से आने वाले बुद्धिजीवी भी, समानता की औपचारिक घोषणाओं जैसे कुछ ज्यादा नौकरियों या सीटों के आरक्षण, शिक्षा संबंधी सुविधाओं आदि से आगे नहीं देख सके। वर्तमान सामाजिक आर्थिक ढांचे को तोड़ने का विचार, उनकी चेतना का हिस्सा नहीं बन सका है। भूमि-संबंधों के खिलाफ, अन्य शोषितों के साथ मिलकर संयुक्त लड़ाई लड़ने का विचार उनके दिमाग में अभी उठा ही नहीं है । इन तबकों से आने वाले बुद्धिजीवियों ने भी देर-सबेर पूंजीवादी लोकतंत्र के ढांचे को स्वीकार कर लिया है और भूमि तथा उद्योग के मौजूदा संपत्ति संबंधों पर सवाल उठाये बिना ये भी जनवादी अधिकारों की आम घोषणाओं से खुद को संतुष्ट कर लेते हैं । कांग्रेसी नेताओं और उनके पाखंड के खिलाफ, आम्बेडकर जैसा तीखा तथा निरंतर आक्रमण किसी ने शायद ही किया हो । इसके बावजूद वह हमारे संविधान के प्रमुख निर्माताओं में से एक थे। यह वही संविधान है जिसे अभी तक कांग्रेस, लोकतंत्र का बेमिसाल नमूना कहकर उसकी तारीफ करते नहीं अघाती । यह वही संविधान है जिसके अंतर्गत अछूतों के घर जलाये जाते हैं, उनके घर लूटे जाते हैं, उनकी औरतों के साथ बलात्कार किया जाता है, उनकी हत्याएं होती हैं, अचरज की बात नहीं है अगर आम्बेडकर को महसूस हुआ हो कि उन्हें धोखा दिया गया है। मजदूर वर्ग इन स्थितियों के चलते, मजदूर वर्ग तथा ट्रेड यूनियन आंदोलन के उभार का, व जातिवाद और सांप्रदायिकता के विरोध में कम्युनिस्टों के प्रचार का लोगों पर असर बहुत कम पड़ सका । कम्युनिस्टों के नेतृत्व में चलने वाला किसान आंदोलन काफी कमजोर रहा है और कृषि क्रांति की जरूरतों की तुलना में आज भी कमजोर ही है। जातिगत भेदों के खात्मे तथा विभिन्न जातियों के बीच की समानता का आधार तो सबका शोषण करने वाले शत्रु वर्ग के खिलाफ व्यापक और जोरदार संघर्ष चलाने के दौर में ही विकसित हो सकता है। इस तरह की व्यापक एकता तेलंगाना में हुए उस सशस्त्र संघर्ष के दौरान पैदा हुई थी जिसमें हरिजन खेत मजदूर