पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/१०२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जाति, वर्ग और संपत्ति के संबंध / 103 का साथ दिया। उन्होंने सत्ता हस्तांतरण के मौके पर आजादी का विरोध करके खासी दयनीय स्थिति झेली। उन्होंने स्वाधीनता दिवस को 'शोक दिवस' का नाम दिया और ‘ब्राह्मण राज' से मुक्ति की मांग की। उन्होंने नवनिर्मित पार्टी द्रविड़ सुनेत्र कषगम का समर्थन किया और सी. राजगोपालाचारी के नेतृत्व में कायम हुए कांग्रेस-मंत्रिमंडल का घोर विरोध किया। उन्होंने 'कामराज कांग्रेस' को सच्चे तमिल हितों का रक्षक बताकर उसका समर्थन किया। उन्होंने सत्ता में आने पर डी एम के का समर्थन किया। उन्होंने एक मूर्तिभंजक के रूप में अपने दीर्घकालीन जीवन के अंतिम चरण में आदर्श के रूप में स्थापित तमिल भाषा तथा तमिल संस्कृति का विरोध किया। वह वर्गीय विश्लेषण से तथा आर्थिक राजनैतिक परिवर्तन के वैज्ञानिक सिद्धांत से कटे हुए समाज सुधार के लड़ाकू प्रचारक भी रहे । 10 इसमें कोई शक नहीं कि जाति के विरुद्ध भावना पैदा करने में श्री पेरियार कामयाब जरूर हुए और छुआछूत को दूर करने के लिए भी उन्होंने अपनी आवाज बुलंद की, लेकिन साफ है कि ये काम ऐसे पूरे होने वाले नहीं थे। बिल्लुपुरम के दंगे, जिनमें अनेक अछूतों की जानें गयीं, हाल के ही उदाहरण हैं। यहां यह भी ध्यान दिलाना गैर जरूरी नहीं होगा कि डी. एम. के. के ही शासन के दौर में तंजावूर के जालिम जमींदारों के गुंडों ने हरिजन खेत मजदूरों की झोंपड़ियों में आग लगाकर 70 से ज्यादा औरतों और बच्चों को जिंदा जला डाला था। जिन लोगों पर इन नृशंस हत्याओं का अभियोग लगा था उन्हें बरी कर दिया गया था। आम्बेडकर वर्तमान सरकार और इससे पिछली सरकारों के शासन में अछूतों पर जिस तरह के बर्बर अत्याचार होते रहे हैं, उनसे यही पता चलता है कि किस तरह आजादी के तीस साल बाद भी पुराने अत्याचार, पुराने अन्याय, जारी हैं। अछूतों के हितों के लिए अथक संघर्ष चलाने वाले महान योद्धा, आम्बेडकर ने अपने शुरुआती दौर में सवर्णों के पाखंड का भंडाफोड़ किया था। कांग्रेस की अच्छी तरह खबर ली थी और आगे चलकर अछूतों के लिए जमीन तथा अलग कालोनियों की मांग रखी थी, मगर, दरअसल, ये सब चीजें कृषि क्रांति के बिना हासिल नहीं की जा सकती थीं। हालांकि दूसरी जातियों पर अछूतों की भूदासों जैसी निर्भरता के खात्मे के लिए, सभी अछूतों को जमीन दिलाने का विचार बिल्कुल सही था, मगर यह उद्देश्य तो सभी भूमिहीनों के संयुक्त संघर्ष के जरिये ही पूरा हो सकता था।