पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/१०१

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102 / जाति क्यों नहीं जाती ? जात-पांतविरोधी आंदोलन अगर कृषि क्रांति के आंदोलन से अलग-थलग रखा जायेगा और अगर यह आंदोलन साम्राज्यवादविरोधी आंदोलन से भी अलग- थलग रहेगा तो इसकी क्या दशा होगी, इसे जातिविरोधी आंदोलन के महान नेता, पेरियार ई वी रामास्वामी की जीवन यात्रा से बखूबी समझा जा सकता है। रामास्वामी शुरू-शुरू में कांग्रेस के साथ जुड़े हुए थे और उस दौर में उन्होंने आजादी के लिए अभियान छेड़ा हुआ था। लेकिन, कांग्रेस नेताओं के जातिवादी पूर्वग्रहों के कारण उन्हें उनसे घृणा हो गयी और वे कांग्रेस के खिलाफ हो गये। इस तरह, साम्राज्यवादविरोधी आंदोलन से कटकर वह उससे दूर ही होते चले गये। कभी-कभी उन्होंने कृषि संबंधों के विरुद्ध चल रहे संघर्ष के साथ खुद को जोड़ा, मगर वह फिर उन्हीं गठजोड़ों और तौर-तरीकों में फंस गये जिनसे उन्हें अपने वांछित लक्ष्य की पूर्ति कभी नहीं हो सकती थी। मार्गरेट रौस बर्नेट की किताब "द पालिटिक्स आफ कल्चरल नेशनलिज्म इन साउथ इंडिया" (दक्षिण भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की राजनीति) की समीक्षा करते हुए एन राम ने जातियों के खात्मे की दिशा में पेरियार की विकास यात्रा को इन शब्दों में दिया है : एक युवक के रूप में उन्होंने जात-पांत पर आधारित सामाजिक व्यवहार के नियम बहादुरी के साथ तोड़े । एक नौजवान के रूप में उन्होंने संन्यास और धर्म में समस्याओं के व्यक्तिगत तथा सामाजिक हल खोजे, मगर नाकाम हुए। एक पक्के कांग्रेसी के तौर पर तहेदिल से आजादी तथा समाज-सुधार के लिए काम किया और स्वाधीनता आंदोलन तथा सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण अपनी व्यक्तिगत संपत्ति का एक हिस्सा खर्च कर दिया। उन्होंने कांग्रेस के उच्च जातीय रवैये तथा सामाजिक रूढ़िवादिता के खिलाफ समाज सुधार का झंडा बुलंद किया। उन्होंने सोवियत संघ की यात्रा के बाद थोड़े से समय तक ही सही, कम्युनिज्म का अभियान भी चलाया और जमींदारी प्रथा के विरुद्ध एक सम्मेलन का आयोजन किया। फिर उनका ऐसा दर्दनाक पतन हुआ कि वह सैल्फ रेस्पेक्ट लीग (आत्मसम्मान लीग) के नेता के तौर पर राष्ट्रविरोधी ज़स्ट्सि पार्टी से गठबंधन के जाल में फंस गये। उन्होंने पृथकतावादी आंदोलन के नेता और प्रचारक के रूप में द्रविड़नाडु की मांग की और उत्तर भारतीयों के प्रभुत्व तथा हिंदी के थोपे जाने के विरुद्ध अभियान चलाया। उन्होंने जस्ट्सि पार्टी के नेता के तौर पर जनता के बीच अपनी सारी साख को धूल में मिला दिया। उन्होंने द्रविड़ कषगम के संस्थापक नेता के तौर पर राष्ट्रीय आंदोलन के खिलाफ ब्रिटिश साम्राज्यवाद