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जातिभेद का उच्छेद


हास का निर्माता होता है, इतना तो आप को मानना ही पड़ेगा कि प्रत्येक देश में बौद्धिक श्रेणी ही सब से अधिक प्रभावशाली श्रेणी होती है, चाहे वह शासक श्रेणी न भी हो । बुद्धिजीवी श्रेणी ही ऐसी श्रेणी होती है जो पहले से किसी बात को देख सकती है, यही श्रेणी परामर्श दे सकती है और नेतृत्व कर सकती है। किसी भी देश में जन-साधारण सुबोध विचार एवं सज्ञान कर्म का जीवन व्यतीत नहीं करते । वे तो प्रायः नक़ल करते हैं और बुद्धिजीवी श्रेणी के पीछे चलते हैं। इस बात में कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं कि किसी देश का समूचा भाग्य उस की बुद्धिजीवी श्रेणी पर निर्भर करता है। यदि वह श्रेणी ईमानदार, स्वाधीन और निष्पक्ष हो तो उस पर विश्वास किया जा सकता है कि संकट आने पर वह नेतृत्व करके मार्ग दिखाएगी ।

यह सच है कि बुद्धि स्वयमेव कोई सद्गुण नहीं । यह तो एक साधन मात्र है और साधन का उपयोग उस लक्ष्य पर निर्भर है जिस के लिए बुद्धिमान मनुष्य यत्न करता है। बुद्धिमान मनुष्य धर्मत्मा हो सकता है। परन्तु वह आसानी से दुरात्मा भी हो सकता है। इसी प्रकार एक बुद्धिजीवी श्रेणी ग़लती करने वाले मनुष्यों को उद्धार करने वाली और सहायता देने के लिए तैयार उच्च-आत्माओं का एक समूह हो सकती है, अथवा यह आसानी से दुष्टों का दल या किसी ऐसे संकीर्ण टोले के समर्थकों का जत्था हो सकती है जिस से उसे पुष्टि मिलती है।

आप इसे एक खेद का विषय समझ सकते हैं कि भारत में बौद्धिक श्रेणी ब्राह्मण जाति का केवल एक दूसरा नाम है । आप को खेद हो सकता है कि दोनों एक ही चीज़ हैं; बौद्धिक श्रेणी का अस्तित्व एक ही जाति