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आर्य समाजियों की वर्ण-व्यवस्था


हिन्दुओं का प्रत्येक वर्ण दूसरे वर्ण से घृणा और द्वेष रखता है। यहाँ तक कि उन्हों ने एक-दूसरे के लिए निन्दात्मक फबतियाँ और कहावतें भी गढ़ रखी हैं ।

वर्ण-भेद ने इन बण या जातियों को सदा के लिए एक- दूसरे का शत्रु बना दिया है। वर्तमान अँगरेज़ के पुरखा गुलाबों के युद्ध ( War of Rose ) और क्रामवेल के युद्ध में एक- दूसरे के विरुद्ध लड़े थे। परन्तु उन के वंशजों में अब किसी प्रकार का वैरभाव नहीं। वे झगड़े को भूल गये हैं । परन्तु आज के ब्राह्मणेतर ( Non Brahman) आज के ब्राह्मणों को क्षमा नहीं कर सकते, क्यों कि ब्राह्मणों के पूर्वजों ने शिवज़ी का अपमान किया था । इसी प्रकार आज के कायस्थों के पूर्वजों पर आज के ब्राह्मणों के पूर्वजों ने जो कलङ्क का टीका लगाया था, उस के लिए कोयम्थ आज के ब्राह्मणों को क्षमा करने को तैयार नहीं । अँगरेजों और हिन्दुओं में जो यह अन्तर देख पड़ता है, इस का कारण सिवा वर्ण-व्यवस्था के आर क्या हो सकता है । वर्ण-भेद और ‘में ब्राह्मण हूँ और वह वैश्य है, इस के ज्ञान के कारण ही आज तक वर्णों के बीच के अतीत कलहों की स्मृति बनी हुई है और हिन्दुओं को सङ्गठित होने से रोक रही है।

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‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌आर्य समाजियों की वर्ण-व्यवस्था

आर्य समाजी लोग एक अलग ही आदर्श बनाये बैठे हैं। वे कहते हैं, भारत की वर्तमान चार हज़ार जातियाँ और उपजातियाँ