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मुझे शाहानी' के नाम से पुकार सकती हैं।

बुढ़िया-अच्छा, तो मिस्टर और मिसेज़ शहानी ! मैं तुम लोगों से एक बात कहूँ । यदि तुम मान जाओ तो मुझे असीम प्रसन्न ता होगी।

किशोर -~-बाप तोहमारी माता के समान हैं। हम आपकी आज्ञा क्यों न मानेंगे?

बुढ़िया-क्या केवल मुंह से कह रहे हो, जैसा कि कहने का रिवाज है, या सचमुच मुझे माता समझते हो ?

किशोर-मैं जो कुछ भी कह रहा हूँ, सच्चे हृदय से कह रहा हूँ।

बुढ़िया-तो आज से तुम मेरे बेटे हो और कमला मेरी बहू है। मेरे कोई संतान नहीं है । मैं तुम्हारे समान बेटा पाकर बहुत ही प्रसन्न हुई हूँ। तुम वीर भी हो और विश्वासी भी। अपनी विश्वासपात्रता तुमने कमला के लिये अपने घर-बार का त्याग करके सिद्ध करदी, और वीरता मैंने अपनी आँखों देख ली है। बोलो, क्या तुम दोनों मेरी प्रार्थना स्वीकार करते हो ? यदि उत्तर 'हां' में है, तो मेरे साथ विलायत चलना पड़ेगा। बोलो, स्वीकार है?

किशोर ने ऐसा अनुभव किया मानो भगवान् ने अपनी दया से हमें यह सहायता भेजी है। इसे अस्वीकार न करना चाहिये। उसने उठकर बुढ़िया के चरण छूकर नमस्कार किया। कमला अनुकरण किया। फिर किशोर ने बसलाया कि हम हिन्दू लोग इस प्रकार अपने वृद्धजनों को प्रणाम करते हैं और वे हमें आशीर्वाद देते हैं। हम दोनों ने अपनी प्रणाली से आप को प्रणाम किया है।