को पकड़ा और उसे ऊपर उठा दिया, ताकि यदि यह निशाना
लगाये भी तो उससे कोई हानि न हो सके। डाकू ने दूसरे हाथ
की सहायता से अपने पिस्तौल वाले हाथ को नीचे लाने की
कोशिश की, किन्तु यह ऐसा न कर सका। दोनों में धका-
पेश होने लगी। किशोर पद्यपि डाकू से कुछ कमज़ोर था,
फिर भी आज कल के नवयुवकों के समान सर्वथा गया-बीता
भी न था। वह भी नित्य अखाड़े में जाने वाला था।
इस समय अचानक संकट सामने देखकर वह अपनी पूरी शक्ति
से सामना कर रहा था। इतने में दोनों स्त्रियां भी जग गयीं।
श्रीमती कूपर तो बहुत ही घबरा गयी थीं। किन्तु कमला ने
दुर्घटना की गम्भीरता को समझ लिया था। वह चाहती थी
कि किसी किशोर की सहायता करे। किन्तु कैसे, यह
उसकी समझ में नहीं आता था। इतने में उसने देखा कि डाकू
धीरे धीरे पिस्तौल वाला हाथ नीचे ला रहा है। यदि यह
उसे तनिक भी और नीचे ला सका तो किशोर की कुशल नहीं।
कुछ ध्यान आते ही यह तेज़ी से उठी और डाकू की पिस्तौल
वाली कलाई को दांतों से काट लिया। पीड़ा से व्याकुल होने
के कारण उसकी पिस्तौल हाथ से छूटकर नीचे गिर गयी।
कमला ने पिस्तौल उठाली और उसकी नली डाकू की छाती
पर रखकर कहा-बदमाश । दोनों हाथ पीछे कर, नहीं तो
यह देख । इसमे पिस्तौल के घोड़े को दबाना चाहा । डाकू ने
मृत्यु का भय देखकर उसकी आज्ञा का पालन किया, और
दोनों हाथ पीछे कर दिये । किशोर ने उसकी पगड़ी उतार कर
इसके दोनों हाथ उससे बांध दिये। बाकू का चेहरा देखते ही
श्रीमती कूपर के मूंह से चीख निकल गयी। वह बोली-कौन !
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