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देखो, सुनो मेरी प्रतिज्ञा--- ‌
चन्द्र-सूर्य अपनी मर्यादा छोङ चले तो छोड़ चलें । ‌
बंधु-कुटुम्बी भी अपना मुंह मोड़ चले तो मोड़ चलें ।। ‌
माता-पिता बहिन-भ्राता भी भूल सके तो लाये भूल । ‌
सम्भव नहीं कि सज्जन फिर भी सत्य प्रतिज्ञा तोड़ चलें ।।

अस्तु । अब तुम निश्चिन्त रहो। किशोर नीच नहीं है। अपराध मेरा है, और मैं उसके लिये कड़े से कड़ा दंड भुगतने को तैयार हैं। जब तक मैं जीवित हूंँ, तुम पर कोई आंच नहीं आ सकती। मैं आने वाली आपत्तियों के सम्मुख पर्वत को तरह अडिग खड़ा दिखलाई दूँगी।

दस-बारह दिन बाद कमला के पिता को यह बातें मालूम हो गयीं। वह अल कर अंगारा हो गया। कमला पर वज्र बन कर गिरा । उसे गालियां देने लगा । थपड़ मार मार कर उसे अधमरा कर दिया। उसे घर से बाहर करते हुए वह बोला--भो उसी के पास जहाँ तुम अभी तक रंग रेलियाँ मनाती रही हो । देखना, जो फिर कभी मेरे घर में पैर रखा।

बेचारी कमला रोती-धोती किशोर के पास पहुंची । वह उस समय अपने कमरे में बैठा एन्ही बातों पर विचार कर रहा था। कमला ने रो रो कर अपने निकाले जाने का सब इछ कह सुनाथी । किशोर ने उसे धीरन बँधाया । वह उसी समय उठकर अपने पिता जी के पास पहुंचा और उनसे कहने लगा--- पिता जी, मुझसे एक बड़ा भारी अपराध हो गया है। मैं अपराधी हूँ और अपने क्षमा-याचशा करने आया हूँ। मेरा अपराध क्षमा कीजिये, और तीन जीवों को नष्ट होने से