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जात-पाँत का गोरखधंधा
( १ ) राष्ट्रीयता के भावों का नाश होगया ।
(२) एक विशाल और शक्तिशाली प्राचीन आर्यजाति छोटे छोटे समुदायों में विभक्त होकर अत्यन्त दुबैलावस्था को प्राप्त होगई ।
( ३ ) जात पाँत के झूठे झगड़े ने आपस की सहानुभूति को मटियामेढ कर दिया।
( ४ ) समानता की भाव नाश होकर जन्म से ऊँच नीच के विचारों ने अड्डा जमाया जिससे सात करोड़ अछूत बना दिये गये ।
( ५ ) न्याय के स्थान में अन्याय का डंका बजने लगा।
(६) भारत में जो आपस की फूट का रोना रोया जाता है उसकी जङ भी यही जातिभेद है।
( ७ ) छोटे छोटे समुदाय बन जाने के कारण ही बालविवाह, वृद्धविवाह और अनमेल विवाह हो रहे हैं।
( ८ } भारत-निवासियों के पांव में परतंत्रता की बेड़ी पड़ने का कारण जात-पाँत ही है।