पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१२५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(११)
जाति-भेद क्या है

अर्थः-पहिले पहिले सध वाङ्मय को व्यापने वाला प्रणव ( ओंकार ) एक ही अद्वितीय नारायण देवता एक अग्नि और एक ही वर्ण था।

भागवत ने इस श्लोक में प्राचीन काल की एकता का कैसा सुन्दर वर्णन किया है, किसी तरह की लगा लिपटी नहीं रक्खी, साफ साफ बताया है कि—

( १) प्राचीन काल में भिन्न भिन्न मत नहीं थे केवल एक वेद धर्म का प्रचार था । इसलिय आजकल की तरह गठरियों पुस्तकें न थीं। केवल एक वेदवाणी थी जो सब सत्यविद्याओं का भंडार है। |

(२) इस समय भिन्न २ गुरु भिन्न २ मंत्रों का उपदेश करते हैं। प्राचीन काल में केवल प्रणव अर्थात् ओंकार ही सेब का जप था ।

(३) उन दिनों उपासना के लिये भिन्न भिन्न नाम के देवता न थे, सर्वव्यापी एक नारायण की ही उपासना की जाती थी।

(४) उस समय एक ही अग्नि में सब हवन करते थे। |

(५) इसी प्रकार एक ही "वर्ण" था । आजकल के समान १८००* जातियां न थीं जो अन्म से मानी जाती हैं।

  • अब अठारह हज़ार जातियां हैं, देखो रिपार्ट मर्दुमशुमारी ( मनुष्यगणना ) सन् १९२१