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आसफ्रअली का पाणिग्रहण किया था, उस समय आप कहीं सोए थे? उस समय आपकी रगे-हमैयत जोश में क्यों न आई? क्या ब्राह्मण-कन्या के किसी दूसरी जाति के हिंदू के साथ विवाह करने से ही आपके रक्त की पवित्रता नष्ट होती है? जब मालाधारी ब्राह्मण तीन-तीन, चार-चार नागर लड़कियों से विवाह करता है, तब आप को नाथरों का अपमान क्यों नहीं खटकता है?

आक्षेप–प्राचीन युगों के उदाहरण देना ठीक नहीं। बाबसराय की कौंसिल के कानून मेंबर, माननीय सर जार्ज लौंडस को मालूम रहना चाहिए कि जो प्राचीन प्रथाएँ अपनी स्वाभाविक मृत्यु में मर सुकी हैं, उनका पालन किसी भी देश में अगली पीढ़ियों पर आवश्यक नहीं हो सकता। जब तक उनकी केवल उपयोगिता ही नहीं, वरन् वर्त्तमान प्रयोजनों के लिये उनी विशेष अवश्यकता भी सिद्ध न की जाये, कोई भी व्यक्ति उनको पुनर्जीवित करने का विचारे मन में नहीं ला सका। समाज के बंधनों को तोड़ डालने की इच्छा रखनेवाले उच्छें स्वस्त्र लोगों को प्राचीन धर्म-ग्रंथों में से सब प्रकार के उदाहरण मिल सकते हैं। देखिए, हिन्दुओं में पहले आठ प्रकार के विवाह थे। वे पुराने समयों के विवाह की थोड़ी-बहुत ढीली और अनिश्चित अवस्थाओं के घोतक हैं। इसलिये पिछले हिंदु-स्मृतिकारों ने कलियुग के लिये उन निषेध कर दिया है। अब केवल ब्राह्म-विवार को ही आज्ञा है। और वही प्रचलित है।

उत्तर—बात असल में यह है कि भिन्न-भिन्न रीति-रिवाज मनुष्य समाज के सुख-शांति के लिये बनाए जाते हैं न कि जैसा कि सनातनी लोग समझे बैठे हैं, समाज उनके लिये। अवश्यकता के अनुसार उनमें किसी भी समय परिवर्तन किया जा सकता है। प्राचीन आर्य या हिन्दू लोग समर्थ थे। वे आजकल के सत्ताहीन