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परिवार के घरेलू सुख को नष्ट करता है, उतना साली के साथ गौंड-साँठ करनेवाला अँगरेज़ अपने परिवार में नहीं एक भाई की ऊँची-जाति की स्त्री दूसरे भाई की नीच जाति की स्त्री के। हाथ का बना भोजन खाना तो दूर, उसके साथ वह बैठ भी कैसे सकती है? ऊँची जाति की स्त्री अपनी नीच जाति की देवरानी को अपने साथ कुल-देवता की पूजा कैसे करने देगी? इस पर भी इस बिल को अपनी इच्छा का (Permissive) कहा जाता है, मानो संपत्ति के प्रश्न को छोड़कर भी इसका अवसर वर और वधू के सिवा और किसी पर नहीं। पड़ोस में खुली हुई शराब की दूकान या छल्ले कोठो में जाने के लिये किसी को मजबूर नहीं किया जाता, फिर भी यह सब के लिये अनिष्टकर सिद्ध होता है। फिर जाति-पाँति तोड़कर विवाह करनेवाला युवक तब तक घरवालों को चैन नहीं लेने देगा, जब तक वह—यदि उसके बाप ने अपनी मृत्यु से पहले ही उसे विरासत से वंचित नहीं कर दिया—संपत्ति बँटवाकर अपने बाकी भाइयों से अलग नहीं हो जायगा। इस प्रकार पाए हुए अपने दाय- भाग को वह अपनी स्त्री के साथ भोग-विलास में फूँक डालेगा, किसी को उसके जाति-पाँति तोड़ने पर कोई आपत्ति न होगी, यदि यह बाक़ी परिवार से संपत्ति का भाग न बँटाए और घर छोड़कर अपनी मौज करता फिरे। यह बिल उन कुकर्मियों और लुच्चों को सुभीते के लिये है, जो हिंदू-परिवार की प्रत्येक पवित्र और प्रिय चीज़ को पाँव तले रौंदना चाहते है, जो बदमाशी और आवारगी का जीवन व्यतीत करना चाहते हैं।

उत्तर—जाति-पाँति तोड़ने का एक बड़ा उद्देश्य जन्ममूलक ऊँच-नीच का झूठा भेद-भाव मिटाकर हिंदुओं में समता और भ्रातृभाव पैदा करना है। इसी झूठे भेद-भाव ने हिंदुओं में फूट डालकर उनको टुकड़े-टुकड़े कर रक्खा है। यदि एक मूर्खा जेठानी, आप लोगों की