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कैथोलिक लोगों की सर्वमनुष्यता के स्वस्थ देना और साथी के साथ विवाह-निषेध को हटा देना पड़ा, यदि रक्तपान होने के बाद फ्रांस को भी दास-प्रथा बंद करनी पड़ी, तो क्या आप समझते हैं कि इस प्रकार रुकावटें डालने से आप इस भारतीय दास-प्रथा अर्थात् जाति-पाँति को चिरकाल तक बनाए रख सकेंगे? क्या इतिहास से शिक्षा लेते हुए यही बुद्धिमता नहीं कि आप जाति-पाँति-तोड़क विवाह-बिल को चुपचाप पास हो लेने दें? इसके लिये लोगों को व्यर्थ का कष्ट सहने पर आप क्यों विवश करते हैं? जाति-पाँति टूट जाने से हिंदू-समाज नष्ट नहीं हो जायगा। मुलसमान, ईसाई और बौद्ध-समाजों में जाति-पाँति नहीं। वे जाति-पाँति के बिना जीते रह सकते हैं, सो कोई कारण नहीं कि हिंदू-समाज क्यों न रहेगा? भारत में सबसे बड़ा हिंदू साम्राज्य महाराज अशोक का हुआ है। यह वह समय था जब कि बुद्ध-धर्म के प्रचार से हिंदुओं में जाति-पाँति विलकुल मिट चुकी थी। इस समय भी जाति-पाँति को माननेवाला भारत पराधीन है और जाति-पाँति को न माननेवाले सभी पाश्चात्य देश स्वाधीन हैं। संदिग्ध वर्ण और वर्णहीन संतान के झूठे भय को छोड़िए। ये सब कल्पित हुए लोगों को जाति-पाँति की कैद-कोठरियों में बंद रखकर फूट द्वारा उन पर शासन करने के लिये ही बनाए गए थे : क्या वर्णहीन मनुष्य के एक टाँग और एक हाथ होता है? इंगलैंड में गत महायुद्ध में हजारों बच्चे ऐसे पैदा हो गए, जिनके पिता का पता ही नहीं। यह सारी समस्संतान क्या समाज का अंग नहीं बना दी गई? महाभारत पर दृष्टि डालने से तो सब कहीं वर्णहीन ही मनुष्य देख पड़ते हैं। नीच जाति के लोगों में भी जाति-पाँति का विष आपका ही फैलाया हुआ है। आपने ही उन्हें यह गुरु-मंत्र दिया है।

आक्षेप—जितना जाति से बाहर विवाह करनेवाला हिंदू अपने