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तीसरा वर्ष।

सन् १०१६ ।

बैशाख सुदी २ संवत् १६६४ से बैशाख सुदी २

संवत् १६६५ तक ।

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१ मुहर्रम १०१५(बैशाख सुदी २) शनिवार(१)को बादशाह भट नदीके तटसे कूच करके तीसरे दिन रूहतासके किलेमें पहुंचा। यह किला शेरखांने उस प्रान्तके दंगई गक्खड़ोंके दबानेके लिये बनाया था। वह तो अधूराही छोड़ मरा था उसके बेटे सलेमरखांने उसे पूरा किया। जो लागत आई वह हरेक पोल पर पत्थरों में खुदा दी है। उससे ज्ञात होता है कि ४० लाख २५ हजार रुपये इसमें लगे थे।

४ मुहर्रम (बैशाख सुदी ५) मंगलको सवा चार कोस चलकर पीलेमें और वहांसे भकरामें पड़ाव हुआ। गक्खड़ोंको बोलीमें पीला टीलेको और भकरा जङ्गलको कहते हैं। पीलेसे भकरा तक सारे रस्तेमें नदी आई जिसके किनारों पर बहुतसे फूल कनेरके फूले हुए थे। बादशाहने अपने साथके सवारों और पैदलोको हुक्म दिया कि सब लोग इन फलोंके गुच्छ सिर पर टांक लें जिसके सिर पर फूल न हो उसकी पगड़ी उतार दें। बादशाह लिखता है-- "अजब बाग लग गया था।"

६ मुहर्रम (बैशाख सुदी ७) गुरुवारको शहर(२) में होकर सिहामें डेरा लगा। इस रस्तेमें पलाश बहुत फूले हुए थे। बाद- शाह उसके चमकीले रंग, बादलोंको छाया और मेंहको फुहारोंसे प्रसन्न मन होकर मदिरा का सेवन करने लगा। उसके आनन्दमें बड़ी मौजसे रस्ता कटा।


(१) मूलमें चन्द्रवार गलत लिखा है।
(२) शहरका नाम नहीं लिखा है।