पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/९३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७७
जहांगीर बादशाह सं० १६६४।

बादशाह कहते थे। उसकी बहुतप्ती करामातें कही जाती हैं काशमीरमें उसकी बहुतसी इमारतें और निशानियां हैं जिनमेसे एक जैनलङ्का तीन कोससे ज्यादा लम्बे और चौड़े उलर नाम सरोवरमें बनी है। उसने इसके तय्यार करने में बहुत परिश्रम किया था। इस सरोवरका सोता गहरा दरियामें है। पहली बार तो बहुत पत्थर नावों में भर भर कर इस जगह पर डाले गये थे जब कुछ मतलब न निकला तो कई हजार नावे पत्थरों सहित डबोई गईं तब कहीं एक टोला १०० गज चौड़ा और इतनाही लम्बा पानीके ऊपर निकला जिसे ऊंचा करके चबूतरा बांधा। उस पर एक तरफको उसने एक भवन ईश्वराराधनके लिये बनाया था। वहां वह नाव में बैठकर आता और भजन करता। कहते हैं कि उसने कई चिल्ले इस जगहमें रहकर खेंचे थे। उसके कपूत पुत्रोंमें से एक कुपात्र उसे सेवाभवनमें अकेला देखकर मारने गया। परन्तु ज्योंही उसपर नजर पड़ी डरकर निकल आया। कुछ देर पीछे रालतान बाहर आया और उसी बेटेको लेकर नावमें बैठा। रास्तेमें कहा कि मैं माला भूल आया हूं तू दूसरी नावमें बैठकर जा और लेआ। लड़का जब वहां गया और बापको बैठा पाया तो लज्जित होकर उसके पांओंमें गिर पड़ा और माफी मांगने लगा। इस प्रकार उस को और भी बहुतसी बातें लोग वर्णन करते हैं और कहते हैं कि उसने परकाय प्रवेशविद्यामें भी खूब अभ्यास किया था। निदान जब बेटोंको राज्यप्राप्त करने में आतुर देखा तो उनसे कहा--मुझे राज छोड़ना क्या प्राण त्याग करना भी सहज है लेकिन मेरे पीछे तुमसे कुछ नहीं होसकेगा। राज्य तुम्हारे पास नहीं रहेगा और तुम थोड़े ही समयमें अपनी करनीका फल पाओगे यह कहकर खाना पीना छोड़ दिया। ४० दिन तक सोया भी नहीं। भक्तों और तपस्वियोंके साथ भगवत भजन करता रहा। चालीसवें दिन परमगतिको प्राप्त हुआ। फिर उसके तीनों बेटे आदमखां हाजीखां और बहरामखां आपसमें लड़े और तीनोंही नष्ट होगये।