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जहांगीरनामा।

में कहीं इतनी केसर और होती है कि नहीं। हर साल पांचसौ मन केसर हासिलमें आती है। मैं केसर फूलनेके दिनों में पिताके साथ यहां आया हूं। संसारके सारे फूल कोंपल और पत्ते निक- लनेके पीछे खिलते हैं और केसरको सूखी जमीनसे पहले ४ उंगल लम्बी कोपल निकलती है फिर सौसनी रंगके फूल निकलते हैं। उनमें चार पंखड़ियां और चार तंतु नारंगी रंगके कुसुम जैसे एक उंगल लम्बे होते हैं यही केसर है। कहीं एक कोस और कहीं आध कोसमें केसरकी क्यारियां होती हैं। दूरसे बहुत भली लगती हैं। फूल चुनते समय उसकी तीव्र सुगन्धसे पासवालोंके सिर में दर्द होने लगा। मैं नशेमें था और प्याले पोरहा था तो भी मेरे सिरमें दर्द होगया। तब मैंने पशुप्रकृति फूल चुननेवाले काशमी- रियोंसे पूछा कि तुम्हारा क्या हाल है ? जाना गया कि उमर भर में कभी उनका सिर नहीं दुखा।"

"इस झरनेका पानी जिसको काशमीरमें भट कहते हैं दायें बायेंके नालोंके आ मिलनेसे दरिया होजाता है। यह शहरको बीचोंबीच होकर निकलता है। इसकी चौड़ाई बहुधा एक तुर्क्क के टप्पे से अधिक न होगी। इस पानीको मैला और बेमजा होनेसे कोई नहीं पीता है। काशमीरके सब लोग डल नामके तालाबका पानी पीते हैं जो शहरके पास है। भटका पानी इस तालाबमें हो कर बारामूला, पगली और दन्तोरके रास्तेसे पञ्जाबमें जाता है। काशमीरमें नदी नाले और झरने बहुत हैं मगर अच्छा पानी लार के दरेका है जो एक गांव काशमीरके अच्छे स्थानोंमेंसे भटके तट पर है। वहां एक सौके लगभग चिनारके हरे भरे वृक्ष आपसमें मिले खड़े हैं। उनकी छाया इस सारी भूमिको घेरे हुए है जो दूबसे ऐसी हरी होरही है कि उस पर बिछौना बिछाना निर्दयता और फूहरपन है।"

यह गांव सुलतान जैनुलआबिदीनका बसाया हुआ है जिसने ५२ वर्ष काशमौरका राज्य स्वतन्त्रतासे किया था। उसको बड़ा