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जहांगीर बादशाह स० १६६४।

करते थे उसमें बसाया। इसीसे उसका नाम गुजरात रखकर अलग परगना बना दिया।

गुजरातसे कूच ।

शुक्रवारको गुजरातसे कूच होकर ५ कोस पर खवासपुरेमें जो शेरखांके गुलाम खवासखांका बसाया हुआ था मुकाम हुआ। वहां से दो कूचों में भटके तट पर पड़ाव हुआ। रातको मेह वायुके प्रकोप और ओले गिरनेसे पुल टूट गया। बादशाहको बेगमों सहित नाव में बैठकर उस नदीसे पार होना पड़ा। फिरसे पुल बांधनेका हुक्म हुआ। एक सप्ताहमें जब पुल बंध गया तो सारी सेना कुशलपूर्वक पार होगई।

भट नदीका निकास।

भट नदी कशमीर में नरनाग नामक एक झरनेसे निकली है। नरनाग कशमीरी बीलीमें सांपको कहते हैं कभी वहां सांप होंगे।

बादशाह लिखता है--"मैंने पिताके समय में दो बार इस झरने को देखा है। कश्मीरसे यह २० कोसके लगभग है। वहां एक अठपहलू चबूतरा २० गज लम्बा और उतनाही चौड़ा बना है। उसके आसपास पत्थरकी कोठरियां और कई गुफाएं तपस्या करने वालोंके योग्य बनी हैं। इस झरनेका पानी ऐसा साफ है कि जो खसखसका एक दाना भी डालें तो तलोमें पहुंचने तक दिखाई देता रहे। इसमें मछलियां बहुत हैं। मैंने सुना था कि इस की थाह नहीं है इस लिये एक पत्थरसे रस्सी बंधवाकर उसमें डलवाई और फिर नपवाई तो मालूम हुआ कि आदमीके कदके डोढ़े से ज्यादा गहरा नहीं है।

"मैंने सिंहासनारूढ़ होनेके पीछे इसके चौतरफ बगीचे पक्के घाट और महल बहुत उत्तम बनवा दिये थे जिनके समान पृथिवीमें फिरनेवाले लोग कहीं कम बताते हैं। यह पानी गांव यमपुरमें पहुंचकर जो शहरसे दो कोस है ज्यादा होजाता है। तमाम काशमीरकी केसर इसी गांवमें होती है। मालूम नहीं कि दुनिया