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जहांगीर बादशाह सं० १६६३।

तक खाना नहीं खाया न कपड़े बदले क्योंकि उसकी गोदमें पला था और उसका मोह सगी मासे अधिक समझता था।

दूसरा नौरोज।

२२ जीकाद (चैत बदी ८) बुधवारको साढ़े तीन घड़ी दिन चढ़े सूर्य्य अपने राजभवन मेषमें आया। बादशाह राजरीतिके अनुसार दौलतखानेको सजाकर सोनेके सिंहासन पर बैठा, अमीरों और मुसाहिबोंको बहुतसा दान दिया।

कन्धार और ईरानका दूत ।

मिरजा गाजो सेना सहित १२ शव्वाल (फागुन सुदी १३) को कन्धारमें पहुंचा। कजलबाश हिलमन्द नदीके तटको जो ५०|६० कोस पर है चला गया। इन लोगोंने अकबर बादशाहका मरना सुनकर फरह और हिरातके हाकिमों और सेवस्तानके मलिकोंके कहनेसे शाहअब्बासके बिना हुकाही इतना साहस किया था। परन्तु जब यह वृत्तान्त शाहको विदित हुआ तो उससे पुरानी प्रीतिकी प्रेरणासे हुसेनबेगको उन लोगोंके रोकनेके लिये भेजा। वह रास्ते में उनको मिला और तिरस्कार करके क्षमा मांगनेके लिए लाहोरमें आया।

शाह वेग जैसा कि हुक्म या कन्धार सरदारखांको सौंपकर दरगाहमें आगया।

रामचन्द्र बुन्देला।

२७ (जोकाद चैत बदी १४) अबदुल्लहखां रामचन्द्र बुन्देलेको लेकर आया। बादशाहने उसके पांवसे बेड़ी काटकर खिलअत पहनाया और राजा बासूको सौंपकर आज्ञा दी कि जमानत लेकर उसको उसके भाई बन्धुओं सहित जो उसके साथ पकड़े आये है छोड़ दे। उसे इतनी कृपाको आशा न थी।

खुर्रमको मनसब ।

२ जिलहज्ज (चैत सुदी४ सं० १६६४) को बादशाहने खुर्रमको तूमान तोग झण्डा और नक्कारा देकर आठ हजारी जात और पांच