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जहांगीरनामा।

उसके आदमी जो मारे जानेसे बचे, भाग गये। बादशाहने इस कामके इनाममें उसका मनसब बढ़ाकर साढ़े चार हजारी जाती और तीन हजार सवारोंका कर दिया।

शिकारकी गिनती।

बादशाहने ३ महीने ६ दिन तक शिकार खेला। ५९१ पशु बंदूकों, चीतों, जाल और हाकेसे शिकार हुए। उनमेंसे १५८बाद- शाहकी बंदूकसे मारे गये। दो बार हाका हुआ। एक बार तो करछाकमें जहां वेगमें भी थीं १५५ पशु बध हुए। दूसरी बार नन्दने में १११। सबका व्योरा यह है--पहाड़ी मेंढ़े १८०, गोरखर नीलगाय ९, पहाड़ी बकरे २९, हरिन आदि ३४८। जोड़ ५६६। कमी रही जोड़में १५।

बादशाहने कई बड़े भारी पशुओंका तोल भी लिखा है। जैसे एक पहाड़ी बकरा २ मन २४ सेर था। एक मेंढ़ा २ मन ३ सेर और एक गोरखर ९ मन १६ सेर निकला।

बादशाह लाहोरमें।

बादशाह शिकारसे लौटकर १६ शव्वाल (फागुन बदी २) बुध- वारको लाहोरमें आया।

दलपत रायसिंहका बेटा।

इन्हीं दिनों में बादशाहको खबर पहुंची कि सादिकखांका बेटा जाहिदखां, शैख अबुलफजलका बेटा अबदुर्रहमान और मोअज्जु लमुल्क वगैरह मनसबदार दलपतका नागोरके परगने में होना सुनकर उसके ऊपर गये। वह भी भागनेका अवसर न पाकर लड़नेको खड़ा हुआ और थोड़ीसी लड़ाई में अपने बहुतसे मनुष्योंको कटाकर माल असबाब सहित भाग निकला।

धायका मरना ।

जीकाद (फागुन व चैत) में कुतुबुद्दीनकी मा जिसने बादशाह को दूध पिलाया था मर गई। बादशाह उसकी लाशका पाया अपने कन्धे पर रखकर कुछ दूर तक गया शोकके मारे कई दिन