पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/८३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६५
जहांगीर बादशाह सं० १६६३।

था कि मैं अपने अपराधोंसे लज्जित हूं तुम कह सुनकर ऐसा करो कि शाहजादा मेरे लड़के बाघाका आना स्वीकार कर ले। शाह- जादा कहता था कि या तो राना आप आवे या करणको भेजे । परन्तु जब खुसरोके भागनेके समाचार पहुंचे तो आसिफखां आदि अमीर बाघाके आने पर राजी होगये। वह माण्डलगढ़में आकर शाहजादेसे मिला और शाहजादा राजा जगन्नाथ आदि सरदारों को वहां छोड़ आया।

सुलतान दानियालके बेटे।

मुकर्रबखां जो सुलतान दानियालके बेटोंको लानेके लिये बुर- हानपुर गया था ६ महीने २२ दिन पीछे उनको लेकर आगया । ९ रबीउस्मानी (सावन सुदी ११) सोमवारको बादशाहने उन्हें देखा। उन पर आशातीत कृपा की। वह सात बहन भाई थे। तीन लड़के तहमुस, बायशंकर और होशंग थे। चार लड़कियां थीं। तइमुर्सको तो बादशाहने अपनी सेवामें रख लिया बाकी अपनी बहनोंको सौंप दिये और कहा कि इनकी अच्छी तरह सम्हाल रखना।

लंगरखाने।

बादशाहने अपने राज्य भरमें लंगरखाने खोलनेका हुक्म भेजा। कहा--प्रत्येक स्थान पर चाहे वह खालसेका हो चाहे जागीरका, वहांकी व्यवस्थाके अनुसार कंगालोंके लिये साधारण खाना पक- वाया जाय जिससे मुसाफिरोंको भी लाभ हो।

राजा मानसिंह।

राजा मानसिंहके लिये बंगालमें खासा खिलअत भेजा गया।

शाहजादे खुर्रम और बेगमोंका लाहोरमें आना।

बादशाह चलते समय खुर्रमको महलों और खजानोंकी रखवाली पर आगरेमें छोड़ आया था। अब जो ख़ुसरोंके पकड़े जानेपर उसको बुलाया तो वह बेगमों सहित लाहोरमें पहुंचा। बादशाह