तक पहुंचाया था। मैंने उसे बुलाकर वह पत्र उसके हाथ में दिया और उच्चस्वरसे पढ़नेको कहा। मेरा ऐसा अनुमान था कि पत्र देतेही उसका दम बन्द होजावेगा। पर वह निर्लज्जतासे उसे इस तौर पर पढ़ने लगा कि मानो उसका लिखा हुआ ही नहीं है। हुक्मसे पढ़ता है। अकबरी और जहांगीरी बन्दोंमेंसे जो उस सभा में उपस्थित थे जिस किसीने वह पत्र देखा और पढ़ा उसीने उसको धिक्कार दी। मैंने पूछा कि उस दुष्टताको छोड़कर जो मुझसे तुझको है जिसके कारणोंकी कल्पना भी तूने अपनी कुटिल बुद्धिसे कर रखी है, मेरे बापसे क्या तेरा ऐसा बिगाड़ हुआ था जिससे उनके शत्रुओंको तुम ऐसी बातें लिखनी पड़ी? मेरे साथ जो कुछ तूने किया मैंने उसे टालकर तुझे फिर तेरे मनसब पर रहने दिया। मैं जानता था कि तुझको मुझीसे बैर है पर अब जाना कि तू अपने पालकर बड़ा करनेवालेका भी द्रोही है। मैं तुझे उसी धर्म और कर्म्मको सौंपता हूं जो तेरा है और था। उसने उत्तरमें कुछ न कहा। कुछ कहता भी तो क्या कहता, कालामुंह तो होही चुका था।"
बादशाहने यह कहकर उसकी जागीर छीन लेनेका हुक्म दिया। यह अपराध क्षमाके योग्य न होने पर भी कई कारणोंसे उसे कुछ दण्ड न दिया।
परवेजका व्याह ।
२६ जमादिउस्मानी (कार्तिक बदी १३) रविवारको शाहजादे परवेजका विवाह सुलतान मुरादकी बेटीसे मरयममकानी बेगमके महलमें हुआ और उत्सवकी मजलिस परवेजके स्थान पर रची गई। जो कोई गया उसे बहुत प्रकारके सत्कारोंके सिवा सिरोपाव भी मिला।
शिकार।
१० रज्जब (कार्तिक सुदी १३) रविवारको बादशाह शिकारके लिये किरछक और नन्दनेको जाता था। रास्ते में आगरेसे चलकर चार दिन तक राजा रामदासके बागमें डेरा किया।