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जहांगीर बादशाह सं० १६६३।

हुक्म जगह जगह खुसरोके रोकने और पकड़नेका पहुंच चुका था इसलिये प्रातःकाल होते ही पश्चिमी किनारेको कासिमतगीन और खिजरखां आदिने तथा पूर्वतटको जमीन्दारोंने रोक लिया।

२९ (बैशाख सुदी १) रविवारको दिन निकलतेही लोग हाथियों और नावों पर सवार होकर नदीमें गये और खुसरोको पकड़ लाये।

३० (बैशाख सुदी २) सोमवारको बादशाहने काबुल पहुंचकर मिरजा कामरांके बागमें डेरा किया और खुसरोके पकड़े जानेके समाचार सुनकर अमीरुलउमराको उसके लाने के लिये गुजरातको भेजा।

बादशाह लिखता है--मैं बहुधा अपनीही समझ बूझसे काम करता हूं दूसरेकी सलाहसे अपनी सलाहकोही ठीक समझता हूं। पहिले तो मैं अपने सब शुभचिन्तकोंकी सखाहके विरुद्ध अपनी सलाहसे जिससे इस लोक और परलोकमें मेरी भलाई हुई, पिताकी सेवामें चला गया। फल यह हुआ कि मैं बादशाह होगया। दूसरे खुसरोका पीछा करने में मुहर्त आदि किसी बातके वास्ते न रुका तो उसको पकड़ लिया। अजब बात यह है कि मैंने कूच करनेके पीछे हकीमअलीसे जो ज्योतिषके गणितमें निपुण है पूछा कि मेरे प्रस्थान करनेको घड़ी कैसी थी तो उसने कहा कि इस मनोरथकी सिद्धिके लिये वही सुइर्त्त उत्तम था जिसमें श्रीमान चल खड़े हुए! उससे उत्तम सुहर्त्त वर्षोंमें भी नहीं निकल सकता।


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