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जहांगीरनामा।

मेरे वास्ते भेजी। उनकी इस मेहरवानीसे मेरा शोक सन्ताप कुछ कम हुआ। चित्तने धैर्य्य पकड़ा। तात्पर्य इस लेखसे यह है कि जो लड़का अपनी कुशीलतासे माताकी मृत्यु का कारण हुआ हो और कोरे भ्रमसेही बापके पाससे भागा हो तो दैवके कोपसे उसे वही दण्ड मिलना चाहिये था जो अन्तमें उसको मिला। अर्थात् पकड़ा जाकर जन्मकैदी हुआ।

१० द्वितीय चैत्र सुदी ११ सं० १६६३ मंगलवारको बादशाह होडलमें उतरा। दोस्त मुहम्मदको आगरेके किले महलों और कोषोंकी रखवालोके वास्ते भेजकर फरमाया कि एतमादुद्दीला वजीरको तो पंजाबमें भेज दे और मिरजा हकीमके बेटोंको कैदमें रखें। जब सगे बेटोंसे यह हरकत हुई तो भतीजों और चचाके बेटीका क्या अरोसा रहा।

बुधवारको पलवलमें वृहस्पतिवारको फरीदाबादमें और १३ शुक्रवारको दिल्ली में डेरे हुए। बादशाहने हुमायूं बादशाह और निजामुद्दीन औलियाको जियारत करके बहुतसे रुपये कङ्गालोको बांटे।

१४ शनि (द्वि० चैत सुदी १५) को नरेलेको सरायमें डेरा हुआ। खुसरो उस सरायको जला गया था। यहांके लोग खुसरो की तरफ झुके हुए थे। इस लिये बादशाहने उनके मुखियोंके द्वारा उनको दोहजार रुपये दिलाकर अपना कृपाभाजन बनाया। कुछ रुपयेशैख फजलुल्लह और राजा धीरधरको देकर फरमाया कि मार्गमें फकीरों और ब्राह्मणोंको दिया करें और तीस हजार रुपये अजमेर में राणा सगरको दिलाये।

१६ (वैशाख बदी २) सोमवारको पानीपतमें डेरे हुए। बाद- शाह लिखता है--यह स्थान मेरे बापदादोंके लिये बहुत शुभकारी हुआ। यहां उनकी खूब जय हुई है। एक इब्राहीम लोदी पर बाबर बादशाहको, दूसरी हेमू पर मेरे पिताकी। यहां खुसरोके पहुंचनेसे कुछ पहले दिलावर खादिम पहुंचा था। और यह हाल